अल्मोड़ा से 16 किमी. की दूरी पर अल्मोड़ा-ताकुला मोटर मार्ग में कफड़खान से लगभग तीन किमी आगे की ओर जाकर घने जंगलों के मध्य लोकदेवता कलबिष्ट का प्रसिद्ध मंदिर है। इस स्थान को अब कलबिष्ट गैराड़ गोलू धाम के नाम से जाना जाता है। मंदिर जाने के लिए बिन्सर वाइल्ड लाइफ सेन्चुरी के मुख्य प्रवेश द्वार से लगभग एक किमी पहले मोटर मार्ग कटता है।
लोकदेवता कलबिष्ट को गौर भैरव का अवतार माना जाता है। वे भगवान श्रीकृष्ण के अंशी हैं। कलबिष्ट की मान्यता इस क्षेत्र से इतनी अधिक है कि समूचे इलाके में कलबिष्ट को डाना गोल्ल कहा जाता है अर्थात गोल्ल की तरह न्याय देने वाला। वे गोल्ल देवता की ही तरह न्यायकारी हैं तथा पीडि़त का पक्ष लेकर अन्यायकारी का दमन करते हैं।
कलबिष्ट के सम्बन्ध में जगरियों से सुनी गाथा के आधार पर जो कथा है उसके अनुसार लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व जन्मे रामसिंह बिष्ट के पुत्र ही कलबिष्ट हैं जो नजदीक में पाटिया ग्राम के पास रहते थे । कलबिष्ट जवान और बहादुर थे । लोक गाथाओं में उनकी मां का नाम रमौता बताया गया है। वे पशुपालक थे तथा बिनसर के जंगल में भैंस चराते थे। उनकी वीरता के सम्बन्ध में अनेक वृतांत प्रचलित हैं । वह असहायों और गरीबों के सहायक थे।
लेकिन वह एक षहयंत्र में भैंस के पैर से कांटा निकालते समय धोखे से मार दिये गये। अपने पौरूष और न्यायकारी स्वरूप के कारण कलबिष्ट को लोक देवता की मान्यता मिली। समूचे बिन्सर क्षेत्र में में उनकी जागर लगायी जाती है । वे अनेक परिवारों में कुल देवता, ईष्ट देवता के रूप में पूजे जाते हैं। उन्हें क्षेत्र में अनेक नामों से पुकारा जाता है।
इस क्षेत्र में कलबिष्ट के दो प्रसिद्ध मंदिर है। षड़यंत्र में मारें जाने पर जहाँ कलबिष्ट का सिर गिरा वहीं एक छोटा मंदिर सड़क के किनारे ही कफड़खान मुख्य बाजार में बनाया गया है । जहाँ उनका धड़ था वह स्थान गैराड़ मंदिर कहलाता है । कफड़खान मंदिर में उनके सिर की तथा गैराड मंदिर में धड़ की पूजा होती है । मान्यता है कि गैराड़ मंदिर गर्भगृह में दो विशाल चट्टानों के बीच कलबिष्ट देवता का शीर्ष विहीन शरीर विद्यमान है। गैराड़ में उनके साथ कलुवा देवता का भी पूजन होता है। सबसे पहले उनका मंदिर कफड़खान में ही बनाया गया था । कफड़खान के मूल मंदिर के निर्माण में लच्छी देवड़ी परिवार के छत के पत्थर लगाये गये थे
अनेक ग्रामीणों ने बताया कि कलबिष्ट आज भी भूले-भटकों को जंगल में रास्ता दिखाते हैं, उनको सड़क तक छोड़ने जाते हैं । उनकी मुरली की तान अब तक सुनाई देती है । इस क्षेत्र में लोग कलबिष्ट के आश्रय पर ही जंगल में अपने जानवरों को निश्चिंत होकर छोड़ देते हैं । वे कलबिष्ट की पूजा अपने पशुओ की रक्षा के लिए भी करते हैं । चितई के गोल्ल की तरह कलबिष्ट से भी लोग न्याय मागंने जाते हैं । वे अनेक परिवारों में कुल देवता, ईष्ट देवता के रूप में पूजे जाते हैं
मंदिर में मनौती मांगने की परम्परा है। मनौतियां पूर्ण होने पर सपरिवार मंदिर आकर भेंट ,पूजा तथा घंटियां चढ़ाई जाती हैं । यहां लायी गई सामग्री से स्वंय ही पूजन का विधान है। मंदिर में चिट्ठी भेजकर भी फरियाद की जाती है। उनके मंदिर में घात डालने की भी परम्परा है । नवरात्रियों में मंदिर में भारी भीड़ रहती है।
हाल ही में करवाये गये जीर्णाेद्धार कार्य के बाद कफड़खान में पुराने मंदिर का स्वरूप काफी निखर गया है। गैराड़ में भी जीर्णाेद्धार कार्य के बाद मंदिर के मूल स्वरूप में चार चांद ही लग गये हैं। आधुनिक मंदिर का अति सुन्दर निर्माण किया गया है। लकड़ी के नक्काशीदार भव्य प्रवेश़ द्वार लगाकर मंदिर की श्री वृद्धि की गई है। गर्भगृह को सुन्दर और सुसज्जित किया गया है। गर्भगृह में विशाल चट्टानों के मध्य कलबिष्ट की पूजा की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है। दुर्गा तथा शिव के अतिरिक्त गुरू मछिन्द्रनाथ, गोरखनाथ आदि नाथ सम्प्रदाय के विभिन्न आचार्यों की प्रतिमाओं को स्थापित एवं प्रदर्शित किया गया है। भैरव पूजन अब गर्भगृह में ही हो जाता है।
गर्भगृह के बाहर के बाहर धूणी है। परिसर में ही मन्नत मीनार है जहां मनौती मांग कर ध्वज और चीर बांधे जाते हैं। परिसर में प्रवेश तथा निकास के लिए अनेक द्वार बन गये हैं। मंदिर कमेटी के सद्प्रयासों से अतिथि गृह की व्यवस्था भी है। समीप में ही पुष्पवाटिका निर्माण तथा वृ़क्षारोपण कर इस क्षेत्र को ज्यादा आकर्षक बनाया जा रहा है।
मंदिर में कलबिष्ट की अतिसुन्दर आदमकद श्वेत मनभावन प्रतिमा उनकी परम्परागत वस्त्रभूषा और कुल्हाड़ी के साथ प्रदर्शित की गई है।
मंदिर समिति की ओर से प्रकाशित पुस्तिका में उल्लेख किया गया है कि दीन दुखियों तथा सताये गये लोगों की मनोकामपना पूर्ण होने , परिवार में शुभ संस्कार होने, पशु प्रसव जैसे अवसरों के बाद समूचे परिवार द्वारा सामूहिक पूजन की परम्परा है। इन अवसरों पर पाठ तथा विधिवत पूजन के लिए पुजारी भी हैं। उड़द, चावल ,खिचड़ी ,घंटियां, रोली, सिंदूर ,कुमकुम से मंदिर के पुजारी पूजा सम्पन्न करवाते हैं।
पूजन के अतिरिक्त यहां जागर भी लगाई जाती है। जागर एक से तीन दिन, चैारास चार दिन तथा महाभारत पांच दिन की होती है। मंदिर के पास ही अनेक विशालकाय चट्टानें हैं जिनके विषय में कहा जाता है कि ये कलबिष्ट की भैंसें हैं जो पत्थरों में बदल गईं। मंदिर में लटकी घंटियां देवता के प्रति श्रद्धा और उनके द्वारा भक्तों की पुकार सुने जाने का जीवंत प्रमाण हैं।
पिछले कुछ वर्षां मेे लोक जगत के आराध्य कलबिष्ट देवता के मंदिर का जीर्णोद्धार विधिवत पंजीकृत समिति बनाकर किया गया है। यह समिति धार्मिक कार्यकलापों के अतिरिक्त भी अनेक सामाजिक कार्य सम्पन्न करवा रही है।