उत्तराखंड के पुरातत्व की गौरव गाथा

मनीषियों द्वारा प्रतिपादित हिमालय के पांच भागों नेपाल, कूर्मांचल, केदार, जलंधर तथा कश्मीर में से दो केदार तथा कूर्मांचल को मिलाकर ही वर्तमान का उत्तरांचल राज्य बना है। पी0 बैरन ने वांडरिंग्स इन द हिमाल में इस पर्वतीय क्षेत्र को हिन्दुओं का यरूशलम तथा पैलेस्टाइन माना है। उत्तराखंड भौगोलिक दृष्टि से...

सिस्टर निवेदिता की स्मृतियां संजोये है अल्मोड़ा का निवेदिता काॅटेज

स्वामी विवेकानंद की प्रथम विदेशी शिष्या सिस्टर निवेदिता को कौन नहीं जानता। लेकिन बहुत ही कम लोग जानते हैं कि सिस्टर निवेदिता को भारतीय ध्यान साधना और उसके अनुसरण की प्रक्रिया का ज्ञान स्वामी विवेकानंद ने अल्मोड़ा में ही दिया था। सिस्टर निवेदिता ने अल्मोड़ा के जिस भवन मे में प्रवास किया उसे आज...

ऐतिहासिक है अल्मोड़ा का रामशिला मंदिर

अल्मोड़ा नगर के अति प्राचीन देवालयों में रामशिला मंदिर का स्थान पहला है। अल्मोड़ा की बसासत के दूसरे चरण के अन्तर्गत राजा रूद्रचंद के कार्यकाल में वर्ष 1588-89 में एक नये अष्ट पहल राजनिवास का निर्माण नगर के मध्य में करवाया गया था जो मल्ला महल कहलाता था। इसी मल्ला महल के केन्द्र में रामशिला मंदिर...

अल्मोड़ा का गौरवशाली इतिहास है

अल्मोड़ा नगर का इतिहास पुराना है। अल्मोड़ा नगर के आसपास प्राचीन बसासत के पर्याप्त प्रमाण काफी संख्या में मिलते हैं। जिनमें कसारदेवी स्थित प्रागैतिहासिक शैलचित्र, उखल, माट-मटेना के शैलचित्र तथा कसारदेवी का रूद्रक शिलालेख प्रमुख है।नगर का अल्मोड़ा नाम अल्मोड़ा अथवा चिलमोड़ा नाम की एक पवित्र घास के कारण...

बाबा नीब करौरी की लीला स्थली है कैंची धाम

हल्द्वानी से अल्मोड़ा की ओर मोटर मार्ग पर भवाली से थोड़ी ही दूरी पर इठलाती बलखाती एक छोटी सी नदी नैनीताल एवं अल्मोड़ा जनपदों की सीमा रेखा को खींचती हुई बहती है। इस नदी को बाबा नीम करोली ने उत्तर वाहिनी नाम दिया। उत्तर वाहिनी के तट पर भवाली से सात किमी आगे अल्मोड़ा की ओर मोड़ घूमते ही सिन्दूरी...

ऐतिहासिक है अल्मोड़ा का शै भैरव मंदिर

शिव रूप भैरव रक्षक देवता हैं। भारत वर्ष के अनेक किलों में उनकी स्थापना गढ़ के रक्षक के रूप में की गई है। अल्मोड़ा नगर में भी रक्षक देवता के रूप में उनकी स्थापना नगर के प्रमुख स्थानों में अष्ट भैरव रूप में की गई थी। अल्मोड़ा में अष्ट भैरव मंदिरों की स्थापना का सम्बन्ध चंद शासक उद्योत चंद (1678-98)...

प्रागैतिहासिक हैं लखुडियार के शैलचित्र

लखुडियार का चित्रित शैेलाश्रय अल्मोड़ा नगर से १३ किमी. दूर अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ मार्ग पर दलबैंड के पास है । इसके बगल से ही सुआल नदी बहती है । सुआल का रूख यहां अर्धचन्द्रमा की तरह वर्तुलाकार हो जाता है । सड़क के दांयीं ओर नदी से लगा हुआ एक विशालकाय शिलाखंड है। इस विशाल शिला का ऊपरी भाग सर्प जैसी आकृति...

जन- जन के आराध्य हैं बाबा गंगनाथ

पर्वतीय क्षेत्रों में बाबा गंगनाथ का बड़ा मान है। वे जन- जन के आराध्य लोक देवता हैं। बाबा गंगनाथ की लोकप्रियता का प्रमाण जगह -जगह स्थापित किये गये उनके वे मंदिर हैं जो वनैले प्रान्तरों से लेकर ग्राम, नगर और राज्य की सीमा पार कर उनके भक्तों द्वारा स्थापित किये गये हैं। इन्हीं में से एक है अल्मोड़ा...

स्वामी विवेकानंद की स्थायी विरासत का प्रतीक है काकडी़घाट

स्वामी विवेकानंद की आध्यात्मिक यात्रा में काकडी़घाट का विशेष स्थान है। यह एक ऐसा स्थान है जहाँ उन्होंने एक ऐसी गहन अनुभूति का अनुभव किया जिसने ब्रह्मांड के बारे में उनकी जिज्ञासा का स्पष्ट समाधान किया। अभी भी काकडी़घाट...

चंद राजाओं के सपनों का शहर है अल्मोड़ा

अल्मोड़ा चंद राजाओं के सपनों का शहर है। चंद राजाओं ने इस नगर को बसाने, सुन्दर और व्यवस्थित बनाने, जल प्रणालियों को सुरक्षित रखने तथा एक सांस्कृतिक नगर के रूप में स्थापित करने में अपना अप्रतिम योगदान दिया था। उनके द्वारा...

हिलजात्रा

हिलजात्रा कुमाऊ क्षेत्र के सोर घाटी में मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण उत्सव है। यह उत्सव प्रतिवर्ष भाद्र माह के शुक्लपक्ष में मनाया जाता है। यह पर्व यहां मनाये जाने वाले एक अन्य पर्व आँठू के अन्तिम दिन अथवा उससे एक दिन...

    अल्मोड़ा नन्दादेवी मेले में नन्दा की पूजा एवं तन्त्र

शिरीष पांडे ज्योतिष, तन्त्र और मन्त्र ये ऐसी तीन विद्यायें हैं, जिससे उत्तराखण्ड का जनजीवन और लोक संस्कृति काफी प्रभावित रही है। कत्यूरी और चन्द राजा तन्त्र विद्या में पारंगत माने जाते थे। देवी की पूजा युद्ध देवी के रूप...

विष्णु के वाहन हैं गरुड़

भगवान विष्णु के साथ अनिवार्य रूप से रहने वाले पक्षीराज गरूड़ का उल्लेख ऋग्वेद में सुपर्णा गरूत्मान के नाम से हुआ है। सूर्यदेव के सारथी अरूण के छोटे भाई , विनीता तथा कश्यप ऋषि की संतान गरुड़ विष्णु के वाहन हैं। कला में...

शिखरों के लोक में बसन्त

भारतीय संस्कृति में नदी, पहाड़, पेड़-पौंधे पशु-पक्षी, लता व फल-फूलों के साथ मानव का साहचर्य और उनके प्रति संवेदनशीलता का भाव हमेशा से रहा है। प्रकृति और मानव के इस अलौकिक सम्बन्ध को स्थानीय लोक ने समय-समय पर गीत, संगीत...

ऐतिहासिक है अल्मोड़ा का शै भैरव मंदिर

शिव रूप भैरव रक्षक देवता हैं। भारत वर्ष के अनेक किलों में उनकी स्थापना गढ़ के रक्षक के रूप में की गई है। अल्मोड़ा नगर में भी रक्षक देवता के रूप में उनकी स्थापना नगर के प्रमुख स्थानों में अष्ट भैरव रूप में की गई थी।...

प्रकृति और मानव के सह-रिश्तों का पर्व है सातूं-आठूं

कुमाऊँ में ‘सातूं-आठूं’ का पर्व ‘गमरा-मैसर’ अथवा ‘गमरा उत्सव’ के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व नेपाल और भारत की साझी संस्कृति का प्रतीक है। पिथौरागढ़ व चंपावत जिलों के सीमावर्ती...

शिल्प में पार्वती

कुमाउ मंडल से प्राप्त शाक्त प्रतिमाओं में देवी पार्वती की सर्वाधिक प्रतिमायें प्राप्त होती हैं ।बाल्यावस्था में इनका नाम गौरी था जब ये विवाह योग्य हुईं तो इन्होंने शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिये घोर तपस्या की।...

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