डीडीहाट तहसील से गंगोलींहाट कस्बे से ११ किमी. की दूरी पर पट्टी तल्ला बडाऊँ माना डीडीहाट क्षेत्र से पाताल भुवनेश्वर नामक ग्राम है । इस गांव में एक प्राचीन दर्शनीय गुफा भूगर्भ के अन्दर है । भूगर्भ के अन्दर की वृहदाकार गुफा कोे लोग पाताल कहते हैं ।
भुवनेश्वर नामक इस गुफा की जानकारी आस-पास के लोगों को कब से है, इसका कोई प्रामाणिक इतिहास ज्ञात नहीं है । ई. टी. एटकिंन्सन ने अपनी पुस्तक हिमालयन गजेटियर में इस गुफा का विस्तृत वर्णन संभवतः स्कन्दपुराण के मानस खंड के आधार पर दिया है । स्थानीय लोगो में पानी के टपकने से कैल्शियम कार्बानेट की बनी चट्टानों के विभिन्न आकृतियों में बदल कर कतिपय दैविक आकृंतियों में परिवर्तित होने की घटना को धार्मिक विश्वास से जोड़कर अनेक दन्त कथाओं का प्रचलन हुआ ।
इस गुफा तक पहुँचने के लिये एक अति संकरा रास्ता बना है जिसमें लगे छोटे-छोटे पत्थरो की मदद से पैर टिकाते हुए किसी प्रकार नीचे उतरा जा सकता है । पहलेदर्शक चीड़ के छिलकों से बनी मशाल को जलाकर
अन्दर के घुप्प अंधकार को दूर करने की व्यवस्था करते थे। अन्दर पहुंचने पर गुफा विस्तृत और बहुआयामी हो जाती है । गुफा का प्रथम द्वार नृसिंह द्वार कहलाता है, इसी प्रकार अन्दर जो भिन्न-भिन्न रास्ते जाते हैं उनके नाम शेषनाग द्वार, रानीद्वार, धर्मद्वार तथा मोक्ष द्वार कहलाते हैं ।
अन्दर की गुफा में तीन गुप्त खंड और हैं इनके नाम है (9) स्मर (२) सुमेरू (३) स्वधम। पुजारीं लोक विश्वास के आधार पर ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इन्द्र, गन्धर्व, दैत्य, नाग, विश्वेश्वर-शिवलिगं, ऐरावत, गरूड़, देवगुरू बृहस्पति, उच्चेैश्रवा नामक घोडा़, कल्पवृक्ष, शेषनाग आदि की स्थापना बताता है । इसी प्रकार की अन्य कहानियों के आधार पर सतीश्वर शिवलिंग, भुवनेश्वरी कुण्ड आदि देवी-देवताओं का महात्म भी बताता है । गुफा में एक स्थान पर थन जैसी आकृतियाँ हैं, छत से टपकते दुनिया पानी को कामधेनु गाय के थनों से निकलता दूध बतलाया जाता है । शिव पार्वती की क्रीडा आदि अनेक रोचक प्रसंग चट्टान में स्वयं निर्मित -आकृतियों से पुजारी जोड़ते है ।
पुजारी बताते हैं कि गुफा से काशी, कैलाश, रामेश्वरम् जाने के लिये रास्ते भी हैं । वासुकीनाग का भी यह स्थान रहा है तथा पाण्डवों ने अपना अज्ञातवास इसी गुफा में गुजारा था। बीच-बीच में अनेक रास्ते हैं जिससे गुफा कई भागो से विभक्त हो गयी है । गांव वाले ही इन पूरे रास्तों कोसही रुप से जानते हैं । बाहर से आया पर्यटक तो इस भूल-भुलैया में खो सकता है ।
पाताल भुवनेश्वर को कतिपय लेखक नाग सभ्यता के अवशेष मानते है । कहा जाता है कि यमुना में आतंक का राज़ कायम करने वाला कालियनाग श्रीकृष्ण से पराभूत हो उत्तर की ओर भाग कर जाया था तब पाताल भुवनेश्वर की यह गुफा ही कालियनाग का आश्रय स्थल रही थी । पाताल भुवनेश्वर के पास ही अन्य कई मदिर भी है जिन्हें नाग राजाओं द्वारा स्थापित समझा जाता है । इनमें कुछ मंदिर शिल्प की कालजयी कृतियां हैं । कालीनाग, बेरीनाग, धौलीनाग, पिंगलनाग, खरहरीनाग, अठगुलीनाग ऐसे ही स्थल हैं। श्रेष्ठ शिल्पी अथवा विद्वान एव दुद्धर्ष पुरूष के लिये भी नाग शब्द पर्याय के रूप में प्रयुक्त होता था । पाताल भुनेश्वर ग्राम में वास्तु शिल्प की दृष्टि से महत्वपूर्ण कुछ मंदिर भी हैं। इनमें चंडिका मंदिर वल्लभी
शेैली के देवालय का प्रतिनिधित्व करता है । चंडिका मंदिर आयताकार है। गर्भगृह को समेटे केवल सामान्य अन्तराल व स्तम्भों पर आधारित मंडप को ही अपनी संरचना से समेकित किये हुए है । उर्ध्वछंद योजना की दृष्टि से यह मंदिर परम्परागत गढ़न खुर, कुम्भ, कलश सहित सादी पट्टी तथा त्रिरथ रेखा शिखर और ढोलाकार गजपृष्ठाकृति शीर्ष से शोभित है । इस मदिर के पास नागर शैली का एक त्रिरथ रेखा शिखर शिव मंदिर
और है जिस पर अस्पष्ट नागरी लिपि से एक लेख उत्कीर्ण है ।