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प्रेरणा स्तम्भ है नृत्य सम्राट उदय शंकर का दीपदान

प्रेरणा पुरूष अपने जीवन में प्रयोग की गई विशिष्ट वस्तुओ को भी अति महत्वपूर्ण धरोहर बना जाते हैं। विश्व विख्यात नर्तक उदय शंकर का उनके अल्मोड़ा कार्यकाल में प्रयोग किया गया अति सुन्दर पानस (दीपदान) अल्मोड़ा नगर में उनके रंगमंचीय कार्यकलापों की स्मृतियों का जीवंत प्रतीक बना हुआ है।

सिंधु गंगोला

उदय शंकर कोे आधुनिक भारतीय नृत्य का प्रणेता माना जाता है जिन्होंने भारतीय शास्त्रीय नृत्य के विविध आयामों में पश्चिमी रंगमंचीय तकनीकों के नये रंग भर कर 1920 -30 के दशक में उसे यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित विश्व भर में प्रतिष्ठित किया। स्थानीय स्तर पर भी कुमाउनी रामलीला में उदय शंकर के नाट्य प्रभावों को अब तक देखा जा सकता है।

अपने मित्रों की सलाह पर वर्ष 1938 में उन्होंने भारत लौटकर हिमालय की गोद में बसे अल्मोड़ा को अपनी भावी योजनाओ के लिए चुना। कहा जाता है कि गुरूदेव रविन्द्र नाथ टैगोर की प्रेरणा से उन्होंने भारत में अपना नृत्य स्कूल संचालित करने का मन बनाया तथा इसके लिए वर्ष 1939 में अल्मोड़ा में उदय शंकर इंडिया कल्चरल सेंटर की स्थापना की गई ।

अल्मोड़ा में उनके साथ कथकली के प्रख्यात नृत्य गुरू शंकरन नम्बूदरी , भरतनाट्यम के कंडप्पा पिल्लई , मणिपुरी के अम्बी सिंह और संगीत के मेहर घराने के उस्ताद अलाउद्दीन खान सम्मिलित थे। यहां उनके समूह में गुरुदत्त, मैडम सिमकी, अमला, नरेंद्र शर्मा, जोहरा सहगल, लक्ष्मी शंकर, विष्णुदास मंगेशराव, प्रभात गांगुली, शिशिन भट्टाचार्य, माधवन नायर, कनकलता तथा उनके अपने भाई रवि शंकर भी छात्र रूप में शामिल हो गए। हालांकि यह केंद्र चार साल ही अस्तित्व में रहा। अनेक अभिनव प्रयोेगों के बाद उदय शंकर इंडिया कल्चरल सेंटर धन की कमी के कारण 1942 में बंद हो गया।

बाद में जब वह अल्मोड़ा छोड़ कर वापस गये तो उदय शंकर इंडिया कल्चरल सेंटर का सारा सामान काफी समय तक अल्मोड़ा में पड़ा रह गया। इस सामान में उदय शंकर सेंटर में कार्यक्रम के प्रारम्भ होने के अवसर पर प्रज्जवलित किया जाने वाला विशाल एवं भव्य धातु निर्मित पानस भी था जिसे नीलाम करवाया जाना था। उदय शंकर के निर्देश पर उनसे जुड़े कुछ लोगों ने अल्मोड़ा में पानस सहित शेष रह गये सामान की नीलामी की।

यही दीपदान वर्ष 1943-44 में गंगोला मुहल्ला निवासी स्व0 हरि किशन लाल साह गंगोला एवं उनके पुत्र जगदीश लाल साह गंगोला ने खरीदा जो अब गंगोला परिवार की एक महत्वपूर्ण धरोहर है। वर्ष 1954 में जब अल्मोड़ा में पहली बार शरदोत्सव का आयोजन हुआ तब तत्कालीन पालिकाध्यक्ष और शरदोत्सव के संयोजक जगदीश लाल साह गंगोला ने इसी दीपदान में दीप प्रज्जवलित करवाया था । तब से नगर में आयोजित विभिन्न समारोहों में इस दीपदान के दीप प्रज्जवलित कर अनेक विशिष्ट शखसियतों ने आयोजित कार्यक्रमों का शुभारम्भ किया है।

पीतल से बने तथा एक कुन्तल वजन से ज्यादा के इस दीपदान को ख्यातिनाम नृत्य गुरु पंडित शंकरन नंबूदरी ने उदयशंकर को उपहार स्वरूप दिया था। शंकरन को उदयशंकर अपना नृत्य गुरू मानते थे तथा केरल जाकर उनके गांव में ही उदयशंकर ने उनसे नृत्य की भंगिमाओं एवं बारीकियों को सीखा था।

अत्यंत भव्य यह पानस लगभग 1.60 मीटर ऊंचा है, इसमें लगभग दो लीटर तेल आता है और सौ बत्तियां जलती हैं। इस पानस का निर्माण अलग- अलग हिस्सों में हुआ है। बत्तियां जलाने वाले वृत्ताकार हिस्से की परिधि लगभग डेढ़ मीटर है। पानस को दो भागों में खोला जा सकता है। प्रयोग से पहले सभी हिस्सों को जोड़कर इसे सम्पूर्णता दी जाती है। किसी विशेष अवसर एवं स्थान पर ले जाने के लिए सम्पूर्ण दीप दान को अलग-अलग हिस्सों में खोलकर आवागमन की सुविधा के लिए अलग किया जाता है । दीप प्रज्जवलन से पूर्व सभी अंगों को जोड़ कर बाद में इन्हें पुनः संयोजित कर लिया जाता है। यह दीपदान इतना भारी है कि इसके ऊपरी चक्राकार भाग को लोग तीन चार लोग घुमाकर निकालते हैं।

कई प्रख्यात कलाकार इस पानस में दीप प्रज्जवलित कर चुके हैं। इनमें मेहर घराने के प्रणेता उस्ताद अलाउद्दीन खां, प्रख्यात सितार वादक रविशंकर की पत्नी अन्नपूर्णादेवी, जोहरा सहगल, प्रख्यात नृत्यांगना सोनल मान सिंह, उदयशंकर के पुत्र आनंद शंकर आदि शामिल हैं।

जिस समय इस दीपदान की नीलामी की गई उस समय भी उदयशंकर ने भाव व्यक्त किये थे कि चाहें इस पानस का मूल्य कम भी मिल जाये लेकिन यह पानस केवल उस व्यक्ति को ही मिले जो कला पारखी हो एवं इस अमूल्य धरोहर को संजो सके। उदय शंकर ने कहा था कि इस पानस से उनका अन्तरंग जुड़ाव है क्यों कि पानस उनके गुरू शंकरन नम्बूदरी द्वारा प्रदान किया गया था। स्व0 जगदीश लाल साह के बडे पुत्र प्रदीप साह बताते हैं इस पानस को उनके परिवार ने अपनी अनमोल धरोहर के रूप में संजोया है। इस बेजोड़ पानस की भौतिक कीमत जो भी हो लेकिन अब यह ऐसी धरोहर है जिसका मूल्य निर्धारण रूपयों में नहीं हो सकता।

स्व0 जगदीश लाल साह के कनिष्ठ पुत्र एवं लोक विधाओं में गहरी पैंठ रखने वाले प्रभात साह कहते हैं-उदय शंकर जैसे महान कलाकार का यह दीपदान वर्तमान में भी अल्मोड़ा मे उदय शंकर कल्चरल सेटर की सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का मूक गवाह तो है ही नगर में सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए उदयशंकर के योगदान का संम्प्रेक्षक भी है। आज भी वह रंगकर्मियों एवं संस्कृति प्रेमियों के लिए नृत्य सम्राट उदयशंकर के महान योगदान का प्रेरक स्तम्भ बना हुआ है।

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