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नंदादेवी राजजात कुमाऊँ-2000

नंदा राजजात की परम्परा कुमाऊँ में किस तरहसे प्रारम्भ हुई इस विषय में इतिहास मौन है। नंदादेवी सम्भ्वतः कत्यूरी नरेशों की भी ईष्ट देवी थी। कत्यूरी नरेश ललितशूरदेव के ई.853 के ताम्रपत्र में वंश शाखा संस्थापक निंबर को नंदादेवी के चरण की शोभा से धन्य होना कहा गया है-भूपाल ललित कीर्ति: नंदाभगवती चरणकमलसनाथ मूर्ति श्री हु निंबरस्य । यही नहीं कत्यूरी नरेश सलोणादित्य की पदमटदेव ताम्रपत्र में भी “नंदादेवी चरणकमललक्ष्मीतः कह कर भगवती नंदा की स्तुति की गयी है। लेकिन कुमाऊँ में उस समय की किसी राजजात का उल्लेख अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है । सम्भवतः राजा बाज बहादुरचंद द्वारा ही कोट मंदिर से देवी की कटार और अल्मोड़ा से राज छत्र के साथ नंदादेवी की प्रतिमाओं को राजजात में भेजना प्रारम्भ किया गया होगा। राजा बाज बहादुर चंद ही नंदादेवी की स्वर्ण प्रतिमा को गढ़वाल से अल्मोड़ा लाये थे तथा उनके द्वारा नंदादेवी को ईष्ट देवी के समान मान्यता दी गयी। अल्मोड़ा का नंदादेवी मेला भी राजा बाजबहादुर चंद द्वारा ही प्रारम्भ करवाया गया था। बाद में राजा ज्ञानचंद तथा जगतचंद ने भी अन्य नंदा प्रतिमाओं की स्थापना अल्मोड़ा में करवायी। राजा आनंदसिंह की मृत्यु के बाद कुमाऊँ में राजजात की परम्परा पर विराम लग गया। नौटी समिति के पास उपलब्ध दस्तावेजों से विदित होता है कि कुमाऊँ की अन्तिम बार भागीदारी वर्ष 1925 में हुई थी।


वर्ष 2000 में राजजात समिति नौटी के निमंत्रण पर कुमाऊँ से भागीदारी पुनः प्रारम्भ की गयी। कुमाऊँ में इसके तहत एक पृथक से आयोजन समिति का गठन किया गया ।श्री नारायण सिंह भाकुनी को अध्यक्ष तथा कौशल सक्सेना को राजजात समिति का महासचिव बनाया गया। बालम सिंह जनोटी को यात्रा प्रभारी का दायित्व सौपा गया। अमर सिंह बिष्ट ने मार्ग व्यवस्था संभाली। डा0 निर्मल जोशी ने संगठन तथा शिरीष पांडे को प्रचार एवं दिनेश गोयल तथा किशन गुरूरानी को जनसम्पर्क का दायित्व दिया गया। सर्वश्री गोविन्द कुंजवाल, हरीश अग्रवाल , मनोज वर्मा, मुन्ना वर्मा, कैलाश पांडे, प्रकाश पांडे ने विभिन्न समितियों के दायित्व संभाले। नंदादेवी मंदिर समिति की ओर से श्री इन्द्रलाल साह के निवास पर कार्यक्रम की रूपरेखा बनाने के लिए अनेक सभायें आयोजित की गईं। प्रभात साह गंगोला ,भुवन जोशी, गिरीश चन्द्र गुरंग,हरीश भंडारी,जयमित्र बिष्ट ,अनूप साह एवं ललित साह को छत्र वाहक की जिम्मेदारी दी गई। डा जे सी दुर्गापाल एवं ललित वर्मा को यात्रा हेतु मेडिकल व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी दी गई।

तीन माह पहले से लगातार राजजात यात्रा को सफल बनाने के लिए कार्य किया गया। आयोजकों ने अलग-अलग वर्गो को जोड़कर कई समितियां इस वास्ते बनवाई। अल्मोड़ा से ग्वालदम तक राजजात की तैयारियों के लिए बैठकें कर राजजात के यात्रा मार्ग एवं पड़ावों का निर्धारण किया गया । शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में राजजात के सम्बन्ध में व्यापक प्रचार करने के लिए जगह जगह महिला समितियों की भी विशेष बैठकें आयोजित की गयी। इसके अन्तर्गत यात्रा का मार्ग अल्मोड़ा के नंदादेवी मंदिर से त्रिपुरासुन्दरी, पांडेखोला, कोसी, गरूड़, ग्वालदम रखा गया जहां से कुमाऊँ से जाने वाली यात्रा को नंदकेसरी में गढ़वाल की यात्रा से मिलना था। रास्ते में माला तथा कोट भ्रामरी मंदिर में रात्रि पड़ाव बनाये गये।

श्री लक्ष्मी भंडार की ओर से राजजात को सफल बनाने के लिए श्री शिव चरण पांडे ने लोक कलाकारों से सम्पर्क का दायित्व संभाला। एसएसबी के पूर्व कमांडेंट पी पाटनी ने यात्रा मार्ग को सुगम एवं सुरक्षित बनाने के लिए एसएसबी एवं राजजात समिति के मध्य महत्वपूर्ण सेतु की भूमिका निभाई। गीत एवं नाटय प्रभाग के निदेशक प्रेम मटियानी द्वारा गीत एवं नाटय प्रभाग की ओर से विशेष सांस्कृतिक दल राजजात में भेजे गये। प्रदेश सरकार के मंत्री नारायण राम दास एव बलवंत भौर्याल ने शासन एवं प्रशासन को यात्रा में सहयोग के लिए समय समय पर निजी रूप से भी सक्रिय होकर सहयोग दिया गया। पंजाबी सभा की ओर से ओमी वोहरा एवं बंसीलाल कक्कड़ के नेतृत्व में पंजाबी समाज की महिलाओं ने विशाल आरती का आयोजन किया। छंतोली के नगर भ्रमण कार्यक्रम के अवसर पर पुलिस विभाग की ओर से पुलिस उपाधीक्षक दलीप सिंह कुंवर, निरीक्षक खीम राम तथा निरीक्षक अरविंद डंगवाल ने थाने के सामने आरती एवं राजजात में भेजने के लिए भेंट छंतोली में बांधी। जिलाधिकारी टी वंकटेश तथा पुलिस अधीक्षक गौतम ने नंदादेवी मंदिर से नगर की सीमा पांडे खोला तक पैदल यात्रा के साथ चलकर नंदादेवी को विदाई दी ।

अल्मोड़ा में नंदादेवी राजजात के कार्यक्रम दिनांक 25 अगस्त को महामंडलश्वर परेश यति के प्रवचन से प्रारम्भ हुए। 26 अगस्त को गायत्री परिवार अल्मोड़ा द्वारा पंचकुडीय यज्ञ का आयोजन नंदादेवी मंदिर में किया गया। यज्ञ के कार्यक्रम दिनांक 28 अगस्त तक चलते रहे। आयोजन समिति के आग्रह पर गायत्रीकुंज हरिद्वार के सदस्य इस यात्रा में विशेष रूप से भाग लेने अल्मोड़ा पहुंचे। इस बीच सायं भक्ति रस के मंचीय कार्यक्रमों का आयोजन गीत एवं नाटक प्रभाग द्वारा किया गया। बृजेन्द्र लाल साह ने इस अवसर पर नंदा चालीसा की रचना की। नगर के मंदिरों एवं संस्थाओं की ओर से स्थानीय नंदादेवी मंदिर में नंदादेवी कीअर्चना के लिए आरतियां लायी गयीं। राजजात पर बच्चों की निबन्ध प्रतियोगिता आयोजित की गयी।

हिमांशु साह

अमर उजाला ने राजजात पर विशिष्ट परिशिष्ट प्रकाशित
किये। 26 अगस्त को नंदा देवी की स्वर्ण प्रतिमा की
विधिवत प्राण प्रतिष्ठा चंदवंशीय के.सी. सिंह बाबा ने
की। इस प्रतिमा को नगर के प्रतिष्ठित व्यवसायी नवीन
वर्मा ने राजजात समिति को दान दिया। राजछत्र के रूप
में निंगाल से निर्मित छंतोली की भव्य सज्जा प्रभात शाह
के निर्देशन में की गयी। राजजात के आयोजन में एस.
एस.बी. की भूमिका अत्यंत सराहनीय रही। स्थानीय
नंदादेवी मंदिर में दुर्गम मार्गों एवं परिस्थितियों की
जानकारी देने के लिये विशेष स्लाइड शो का आयोजन
किया गया तथा एस.एस.बी. के पर्वतारोही गिरीश चन्द्र
शाह को अल्मोड़ा भेजा गया। इन्हीं के नेतृत्व में
राजजात के लिये बचाव दल भी यात्रा के साथ रहा।

कौशल सक्सेना

ग्वालदम में यात्रा का भव्य स्वागत तथा नंदकेसरी तक
आवागमन की सुविधा भी एस.एस.बी. द्वारा उपलब्ध
करावाई गयी थी।

27अगस्त को देवी विग्रह और
राजजात छत्र की शोभायात्रा स्थानीय नंदादेवी मंदिर से
प्रारम्भ हुई जो नगर के बाजारों से होती हुई त्रिपुरा
सुन्दरी मंदिर में सम्पन्न हुई। शोभायात्रा मार्ग पर पड़ने
वाले मंदिरों से राजजात छत्र की अर्चना की गयी एवं
घरों से पुष्पवर्षा तथा आरतियां उतारी गयीं। मार्गों को
तोरणद्वार एवं बैनर से सजाया गया था। लक्ष्मीभंडार,
व्यापार मंडल, गढ़वाल सांस्कृतिक परिषद, पंजाबी सभा,
लोककला एवं साहित्य संरक्षण समिति चितई आदि
संस्थाओं द्वारा भी इस अवसर पर आरतियां लायी
गयीं । कुमाऊंँ के पर्वतीय क्षेत्रों में मान्यता है कि सोमवार
को बहिन बेटी की विदाई नहीं होती, 28 अगस्त
को सोमवार था इसलिए देवी को छत्र सहित
नंदादेवी मंदिर के स्थान पर त्रिपुरा सुन्दरी मंदिर में
रात्रि विश्राम करवाया गया।

29 अगस्त को ढोल नगाड़ों के साथ यात्रा
त्रिपुरा सुन्दरी मंदिर में विधिवत पूजन के साथ प्रारम्भ
हुई। देवी छत्र को ले जाने के लिए राजजात समिति
द्वारा अधिकृत दल का गठन किया गया।

कौशल सक्सेना

प्रभात साह गंगोला, भुवन जोशी, गिरीश चन्द्र गुरंग, हरीश भंडारी, अनूप साह,जयमित्र बिष्ट एवं ललित साह को छत्र वाहक की जिम्मेदारी दी गई। इस यात्रा में नंदादेवी को विदाई देने के लिए हजारों की संख्या में
लोग शोभायात्रा में सम्मिलित हुए। राजजात यात्रा को
पर्यावरण के संरक्षण से जोड़ने के लिए स्यालीधार में
वृक्षारोपण का भी आयोजन किया गया। यात्रा के मार्ग
पर जगह जगह शोभा यात्रा भव्य स्वागत किया गया एवं श्रद्धालुओं द्वार यात्रियों के लिए जलपान- की व्यवस्था
की गयी थी। राजजात को देखने के लिए ग्रामीण ढोल
नगाड़ों सहित स्थान स्थान पर एकत्रित हुए । अल्मोड़ा
नगर के एक सौ से ज्यादा वाहनों का काफिला नंदादेवी
को विदाई देने तक गया। कुमाऊँ के अनेक
स्थानों से लोग इस यात्रा में सम्मिलित होने के लिए
अल्मोड़ा पहुँचे । कोसी, मनान, सोमेश्वर होते हुए रात्रि
विश्राम के लिए यात्रा सोमेश्वर के पास मल्लिका देवी
मंदिर माला ग्राम में पहुंची। मल्लिका देवी मंदिर में
महामंडलेश्वर श्री परेश यति ने विधिवत पूजन सम्पन्न करवाया। यात्रियों
की भारी भीड़ को देखते हुए महिला यात्रियों के लिए
कौसानी में रात्रि विश्राम की व्यवस्था जगमोहन अग्रवाल एवं होटल ऐसोसिएशन कौसानी के सहयोग से की गयी थी। यात्रा
मार्ग में कौसानी के छानी- ल्वेशाल ग्राम में प्राचीन लाटू
देवता के मंदिर में भी छत्र एवं नंदा प्रतिमा का भव्य
पूजन किया गया।

दूसरे दिन प्रातः यात्रा का कौसानी में भव्य
स्वागत किया गया । कौसानी एवं गरूड़ के मध्य पड़ने
वाला भेटा ग्राम कभी देवी को भेंट में चढ़ाया गया था।
इस ग्राम के लोगों ने अपनो श्रद्धा को व्यक्त करने के
लिए ग्राम सीमा के प्रारम्भ से ग्राम के दूसरे छोर तक
राजजात छत्र को पैदल चलकर विदा किया। गरूड़ में
हजारों की संख्या में एकत्र हुए श्रद्धालु गीत गाते, ढोल
नगाड़ों के साथ देवी छत्र को पैदल ही लेकर सांय
कोट भ्रामरी के ऐतिहासिक मंदिर में पहुँचे। मंदिर में
सभी यात्रियों के लिए भंडारे की व्यवस्था की गयी थी।
यहाँ कोट मंदिर की ऐतिहासिक कटार एवं अल्मोड़ा से
पहुँची नंदादेवी का मिलन करवाया गया। मंदिर में रात्रि
को झोड़े भगनौल के कार्यक्रम आयोजित किये गये। |
रात्रि के चारों प्रहरों में पश्वा पर देवी का अवतरण हुआ |
प्रात: पूजन इत्यादि के पश्चात कोट मंदिर के
समीप नंदावन की स्थापना करने के लिए वृक्षारोपण का
आयोजन भी किया गया। एक अन्य छत्र में कोट भ्रामरी मंदिर में रखी कटार को राजजात के साथ नंद केसरी के लिए विदा किया गया।
नंदादेवी का ग्वालदम्‌ में फ्रंटियर एकेडमी तथा एसएसबी के जवानों एवं अधिकारियों द्वारा भव्य स्वागत किया गया।

नंदकेसरी में गढ़वाल तथा कुमाऊँ की यात्राओं का भव्य मिलन हुआ। कांसुआ के कुँवर तथा अल्मोड़ा से गये राजवंशीय
के०सी० सिंह बाबा ने इस अवसर पर अपनी अपनी
पगड़ी तथा कटार एक दूसरे को भेंट देकर संकल्प लिया
कि जब- जब राजजात का आयोजन होगा वे इसी स्थान
पर नंदादेवी सहित मिला करेंगे।

गढ़वाल में नंदादेवी राजजात का परम्परागत आयोजन कांसुआ के कुँवर बलवंत सिंह द्वारा चार सींग के मेढ़े और पवित्र रिंगाल की छंतोली को लेकर सिद्धपीठ नौटी पहुंचने और देवी के विधिवत पूजन के साथ सम्पन्न हुआ। मैती संगठन ने नौटी में उत्तरांचल के विभिन्न क्षेत्रों से लाये गये एक हजार वृक्षों के रोपण के साथ यात्रा की सफलता के लिए शुभकामनायें
अर्पित की। नौटी में वेदमंत्रोच्चार के साथए तुमुल शंखध्वनि के बीच यात्रा ने प्रस्थान किया।

राजजात 2000 में गढ़वाल में नौटी से कुल १६ पड़ाव रखे गये थे। नंद केसरी इस वर्ष नया पड़ाव
बनाया गया था। इस बार की यात्रा में कुल पचास हजार के लगभग यात्रियों ने भाग लिया जो इससे पूर्वकी किसी भी यात्रा में सम्भव नहीं हुआ था। लगभग दस से पन्द्रह हजार यात्री होम कुंड तक भी पहुंच गये। पूर्व की परम्पराओं के विपरीत इस बार अनेक महिलायें भी पातरनचौणियां से आगे होमकुंड तक जा सकने में सफल रहीं। इस यात्रा दुखद पक्ष अल्मोडा नगर के
वयोवृद्ध धार्मिक प्रवृत्ति के श्री जगन्नाथ शाह की होमकुंड में ठंड से असामयिक मृत्यु रही । गंगोलीहाट के ही एक अन्य युवक की भी पत्थर गिरने से यात्रा में मृत्यु हो गयी।

नंदादेवी राजजात मात्र एक कर्मकांड अथवा उत्सव यात्रा नहीं वरन यह इस भूभाग की सॉस्कृतिक धारा का निरन्तर प्रवाहमान सॉस्कृतिक धार्मिक सातत्य है। नंदादेवी की कुमाँऊ.गढ़वाल में स्थापित पीठ भविष्य में उत्तरांचल की सॉस्स्कृतिक एकता का सेतु होगी।भविष्य में नंदादेवी राजजात का आयोजन हमें इसअंचल के सॉस्कृतिक उत्सवों से जुड़ने में उत्प्रेरक काभी कार्य करेगा।

स्मारकों को बचाएं, विरासत को सहेजें
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