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सिद्ध संतो की साधना स्थली है काकड़ीघाट का सोमवारी बाबा आश्रम

भारत में संत परम्परा के अग्रणीय संत सोमवार गिरी के काकड़ीघाट आश्रम की जानकारी कम ही लोगों को है। हल़्द्वानी से अल्मोड़ा की ओर जाने वाले मार्ग पर खैरना कस्बे से आगे कोसी नदी के तट पर पश्चिम की ओर काकड़ीघाट महान सिद्ध सन्त सोमवार गिरि महाराज की साधना स्थली रहा है। अल्मोड़ा जनपद की पट्टी कंडारकुआं ग्राम नौगांव में स्थित है यह स्थल। पहले काकड़ीघाट तिराहे से काकड़ीघाट -द्वारसों-कर्ण प्रयाग जाने वाले पैदल मार्ग पर झूला पुल से नदी पार कर घने जंगल में स्थित इस आश्रम में पहुंचना पड़ता था। अब पूरा मार्ग मोटर मार्ग में परिवर्तित कर दिया गया है।

सोमवारी बाबा वीतरागी संत थे। उनके जीवन से सम्बन्धित तिथियों के सम्बन्ध में कोई सर्वमान्य तथ्य उपलब्ध नही है । सोमवारी महाराज का जीवनकाल वर्ष 1919 तक स्वीकार किया जाता है। माना जाता है कि उन्नीसवीं शती के अन्त में महाराज काकड़ीघाट आये थे। यह स्थल पूर्व में चंद राजा देवीचंद ( 1720-1726 ) के गुरू हर्षदेवपुरी, जंगम बाबा तथा गुदड़ी महाराज आदि प्रसिद्ध सन्तों की तपःस्थली रहा था। संत हर्षदेव पुरी ने इस स्थान पर जीवित समाधि ली थी।

सन् 1890 में स्वामी विवेकानन्द भी अल्मोड़ा जाते समय काकड़ीघाट में इस स्थल के पास ही रूके थे। सोमवारी आश्रम के नजदीक ही शिवालय में पीपल व़ृक्ष के नीचे स्वामी विवेकानंद को भाव समाधि में ज्ञान प्राप्त हुआ था। स्वामी विवेकानंद के कारण चर्चित हुआ यह विश्व प्रसिद्ध स्थल सोमवारी बाबा आश्रम से थोड़ा ही पहले कोसी और सिरौता नदियों के संगम पर शमशान पर स्थित है।

सोमवारी महाराज तथा बाबा हैड़ाखान समकालीन थे। दोनों को ही भगवान शंकर का रूद्ररूप माना जाता है। सोमवारी महाराज का जन्म पश्मिोत्तर सीमाप्रांत के पिण्डदादन खां नामक स्थान में हुआ था। उनके सेशन जज पिता अति सम्पन्न थे। सम्पन्नता होने के बाद भी बाल्यावस्था से ही सांसारिकता से विमुख हुए बाबा ने बारह वर्ष की अवस्था में गृह त्याग कर दिया था। कहा जाता है कि सन्यासी जीवन जीने के लिए चित्रकूट जाकर विवेकी महात्मा से दीक्षा ली। कुछ काल आपने चित्रकूट में भी निवास किया।

रनीश एवं हिमांशु साह

सोमवारी महाराज ने अपना साधनाकाल अधिकतर काकड़ीघाट, पदमपुरी आदि में बिताया किन्तु जीवन के अन्तिम वर्षों में वे भीमताल-धानाचूली मोटर मार्ग पर स्थित पदमपुरी में ही रहे। बाबा गर्मियों में काकड़ीघाट तथा शीतकाल मे पदमपुरी में रहते थे। अब पदमपुरी में भी सुन्दर आश्रम है।

उनके जो फोटो उपलब्ध हैं उनसे प्रतीत होता है कि सोमवारी महाराज का परिधान अति अल्प था। अधो अंग में कौपीन और ऊपरी शरीर मे केवल एक वस्त्र ही धारण करते थे। वे लम्बे थे तथा छोटी जटाएं, छोटीे दाढ़ी तथा सुन्दर नेत्रों वाले थे।

सोमवारी बाबा एक सम्पूर्ण संत थे । उनके चमत्कार व करूणा के अनेक प्रसंग उनके भक्तों ने प्रकाशित करवाये हैं। उनके भण्डारे में किसी वस्तु का अभाव नहीं होता था। कहा जाता है कि उनकी यह शक्ति मां अन्नपूर्णा के कारण थी जो उन्हें सिद्ध थीं। काकड़ीघाट आश्रम के पास कोसी नदी में मछलियों का शिकार भी सोमवारी महाराज ने वर्जित किया हुआ था। आश्रम में महिलाओं का प्रवेश प्रतिबन्धित था । वन्य जन्तुओं का शिकार भी निषेध था। अंग्रेज अधिकारी भी उनके प्रति असीम आदर रखते थे। प्रसिद्ध इतिहासकार स्व0 नित्यानंद मिश्रा ने उल्लेख किया है कि उन्होंने दीन दुखियों ,अपाहिजों, अनाथों, अशक्तों की रक्षा की। उन्हें बल, विश्वास दिया। उन्हें जीवन संघर्ष में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। बीसवीं शती के दूसरे दशक तक तो वे घर-घर प्रसिद्ध हो गये थे।

बाबा नीम करोली की भी सोमवारी महाराज पर असीम आस्था थी। नीम करोली महाराज द्वारा स्थापित वर्तमान कैंचीधाम भी पूर्व में सोमवारी महाराज की धूनी का स्थान रहा था। यहां एक कन्दरा में सोमवारी बाबा ने प्रवास भी किया था। यही कारण था कि नीम करोली महाराज ने कैंची और काकड़ीघाट, जो सोमवारी महाराज के साधना स्थल थे, वहाँ हनुमान आदि देवी देवताओं के सुन्दर मन्दिर बनवाए एवं इन स्थानों को तीर्थ के रूप में विकसित किया।

रनीश एवं हिमांशु साह

वर्ष 1965 में नींब करोरी महाराज ने यहां हनुमान जी के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा विधिविधान पूर्वक कराई।

अब इस आश्रम का तो कलेवर ही नया हो गया है। यद्यपि सोमवारी महाराज द्वारा पूजित शिवलिंग, मंदिर एवं धूणि को पूर्व की भांति ही रखा गया है तथापि पिछले वर्षों मे इस आश्रम का कैंचीधाम ट्रस्ट द्वारा सौंदर्यीकरण किया गया है। पूर्व में स्थापित हनुमान प्रतिमा के अतिरिक्त साथ के कक्ष मे कम्बल ओढ़े बाबा नीम करोली की एक अत्यंत सुन्दर परन्तु लघु प्रतिमा स्थापित कर दी गई है। हनुमान मंदिर में सोमवारी बाबा के चित्र लगाये गये हैं । नीम करोली बाबा के छाया चित्र भी लगाये गये हैें।

कुछ वर्ष पूर्व परिसर की चारदीवारी एवं प्राचीन शिवालय का जीर्णोद्धार आदि कई कार्य किए गये हैं। वट वृक्ष के समीप एक नया शिवालय भी बनाया गया है जिसमें प्राकृतिक शिवलिंग स्थापित है। परिसर में ही प्राचीन संतों की चार समाधियां हैं जिन्हें गुदड़ी महाराज की कुटिया के साथ ही ट्र्ष्ट द्वारा अपने पूर्व रूप में ही संरक्षित किया गया है।

रनीश एवं हिमांशु साह

यूं तो वर्ष भर भंडारे के कार्यक्रम चलते रहते हैं परन्तु जून के प्रथम सप्ताह में यहाँ भागवत कथा शिव पुराण आदि विशेष धार्मिक कार्यक्रम होते हैं जिसमें नीम करौली बाबा के सुपुत्र स्वयं उपस्थित होकर व्यवस्था करते थे। सोमवारी महाराज की इस पावन भूमि की पहचान नीम करोली बाबा द्वारा स्थापित हनुमान मंदिर एवं कैंची आश्रम ट्र्ष्ट द्वारा किये गये विकास कार्यों के कारण नीम करोली आश्रम काकड़ीघाट के रूप में भी हो गई है। कैंचीधाम ट्र्ष्ट ही अब इस आश्रम की सम्पूर्ण व्यवस्था देखता है।

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