पर्वतीय क्षेत्रों में बाबा गंगनाथ का बड़ा मान है। वे जन- जन के आराध्य लोक देवता हैं। बाबा गंगनाथ की लोकप्रियता का प्रमाण जगह -जगह स्थापित किये गये उनके वे मंदिर हैं जो वनैले प्रान्तरों से लेकर ग्राम, नगर और राज्य की सीमा पार कर उनके भक्तों द्वारा स्थापित किये गये हैं। इन्हीं में से एक है अल्मोड़ा नगर के समीप -एनटीडी से लमगड़ा जाने वाले मार्ग पर, नगर से लगभग दो किमी दूर, उदय शंकर लोक कला अकादमी के समीप स्थापित प्राचीन गंगनाथ मंदिर जहां आकर सैकड़ो की संख्या में भक्त माथा टेकते हैं।
कभी यह मंदिर नीरव वन में रहा होगा परन्तु अब इसके एक ओर विश्वनाथ जाने वाला मोटर मार्ग है तो दूसरी ओर नजदीक में ही पिथौरागढ़ जाने वाला मोटर मार्ग है। बताया जाता है कि इस जंगल में पूर्व से ही यह प्राचीन परन्तु छोटा मंदिर विद्यमान था जिसे प्राचीन काल से ही उनके भक्त बाबा गंगनाथ की पूजा के लिए प्रयोग करते रहे हैं। परन्तु मूल मंदिर का निर्माण कब और किसने कराया इस पर इतिहास मौन है। माना जाता है कि मूल मंदिर भी चंद कालीन रहा होगा क्यों कि बाबा गंगनाथ की कथा भी कम से कम चार सौ साल पुरानी मानी जाती है। इन गाथाओं में उल्लेख मिलता है कि डोटी के राजकुमार गंगनाथ नंदादेवी के दर्शन के लिए अल्मोड़ा आये थे। इन गाथाओं का समय बाजबहादुर चंद से पूर्व का माना जाता है।
बाबा गंगनाथ का प्राचीन मंदिर एक सुदृढ़ और विशाल शिलाखंड पर स्थित हैं। मंदिर में अब बाबा गंगनाथ, माता भाना और उनके शिशु की प्राचीन प्रतिमाऐं स्थापित हैं। बाबा के भक्त अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर उनको कुर्ता, पायजामा, धोती, पगड़ी एवं भाना मां को उनके वस्त्र एवं श्रंगार की सामग्री अर्पित करते हैं। उनके बालक के लिए खिलौने चढ़ाये जाते हैें। मंदिर में छत्र एवं बांसुरी अर्पित करने की भी परम्परा है। बाबा के परिवार को पूआ, हलवा, पूरी ,रोट, उड़द की दाल के बड़े अर्पित किये जाते हैं।
मूल मंदिर के समकालीन बगल में ही एक छोटा मंदिर और भी है। यह गंगनाथ बाबा के गण झपरूआ का है। बाबा गंगनाथ के पूजन के साथ ही इस मंदिर मे झपरूआ को खिचड़ी और बीड़ी- माचिस अर्पित की जाती है। इसी के बगल मे एक विशाल नाग की आकृति विद्यमान है जिसे शेषनाग माना जाता है। मंदिर में पशु बलि की भी परम्परा है। श्रद्धालु बकरे का बलिदान भी करते हैं।
वर्तमान में न केवल इस स्थान का सौन्दर्यीकरण कर इसे अत्यंत आकर्षक बना दिया गया है अपितु प्रकृति की नैसर्गिक शोभा के विहंगम दृश्यों के अवलोकन हेतु रमणीक स्थल के रूप में विकसित भी किया गया है। मंदिर के जीर्णोद्धार एवं व्यवस्थाओं से जुड़े अतुल बिष्ट बताते हैं- ईष्ट देव बाबा गंगनाथ के इस मंदिर में हजारों श्रद्धालु आते हैं। वर्ष 1998-99 में जब मंदिर का सौन्दर्यीकरण करने का कार्य प्रारम्भ हुआ तो मन्तव्य एकदम स्पष्ट था। मूल मंदिर में ज्यादा छेड़छाड़ न कर इस स्थान की आध्यात्मिकता और नैसर्गिकता को सहेजते हुए यहां श्रद्धालुओं के लिए सभी आवश्यक सुविधायें तो उपलब्ध हों ही, अत्यंत रमणीय प्राकृतिक सुषमा के मध्य ध्यान के लिए भी यह स्थान सर्वसुलभ, आकर्षक स्थल के रूप में विकसित हो सके।
अब इस स्थान पर आयोजनों के लिए आच्छादित आयोजन स्थल, रसोई, धार्मिक यात्रियों के लिए रात्री विश्राम गृह के अतिरिक्त पेय जल भंडारण की भी व्यवस्था की गई है। वृक्षारोपण, बागवानी तथा जल संरक्षण के उद्देश्य से विकास कार्य निरन्तर किया जा रहा है।
मंदिर में अनेक आयोजन किये जाते हैं। मनौती पूर्ण होने, पारिवारिक संकट से मुक्त होने, परिवार में बालक के जन्म तथा विवाह इत्यादि के बाद प्रायः बाबा के भक्त मंदिर में आभार व्यक्त करने आते हैं।
भक्तों द्वारा जागर का भी आयोजन किया जाता है। माघ माह में माघी खिचड़ी का भी आयोजन होता है।अतुल बिष्ट कहते हैं-शारदीय नवरात्र में दो दिवसीय जागर लगाई जाती है। जागर के लिए जगरिये बेरीनाग से आते हैं। डंगरिये पिथौरागढ़ से बुलाये जाते हैें। जागर का पहला चरण रात में तथा दूसरा दिन में सम्पन्न होता है। जागर सम्पन्न होने पर भंडारे का आयोजन किया जाता है। मंदिर में परम्परागत पुजारी का दायित्व सोनू मटियानी परिवार का है।
Great history and great presentation. Thanks.