उत्तराखंड में सर्वहारा वर्ग के सर्वप्रिय यदि किसी देवता का उल्लेख करना हो तो निश्चित ही वह देवता हैं-भैरव। पर्वतीय समाज में उन्हें लौकिक देवता का स्थान मिला हुआ है। उनके छोटे- छोटे मंदिर निर्जन वनों से लेकर गांव- समाज के आसपास की बसासत तक सभी जगह मिलते हैं। शिव रूप भैरव को ना केवल उग्र देवता के रूप में स्वीकार किया गया है अपितु वे परम न्यायकारी भी हैं। उनका उल्लेख अनेक कथाओं में मिलता है जहां उन्होंने पीडि़त के पक्ष में खड़े होकर अन्यायकारी का दमन किया है साथ ही हताश निराश असहायों के पक्ष में न्याय दिलाया है।
भैरव रक्षक देवता भी हैं। भारत वर्ष के किलों में उनकी स्थापना गढ़ के रक्षक के रूप में भी की गई है। अल्मोड़ा नगर में भी रक्षक देवता के रूप में उनकी स्थापना नगर के प्रमुख स्थानों में की गई थी।
अल्मोड़ा में अष्ट भैरव मंदिरों की स्थापना का सम्बन्ध चंद शासक उद्यानचंद (1678-98) के समय में राजदरबार के एक षड़यंत्र में लोक देवता भोलानाथ उनके प्रति आस्था रखने वाली साध्वी तथा उसके अजन्मे शिशु की हत्या एव उनके शरीर के अंगों को नगर के विभिन्न स्थानों पर भूमिगत करने के कथानक से जुड़ा है। जिन स्थानों पर उनके शरीर के कटे अंग भूमिगत किये गये उन्हीं स्थानों पर ही बाद में अष्ट भैरव मंदिरों की स्थापना की गई। चंद शासकों के समय में स्थापित अष्ट भैरव अल्मोड़ा नगर के रक्षक माने जाते हैें।
बद्रीदत्त पांडे के अनुसार कालभैरव, बटुक भैरव, बाल भैरव, शै भैरव, गढ़ी भैरव, आनंद भैरव, गौर भैरव और खुटकुणी भैरव अल्मोड़ा के अष्ट भैरव माने जाते हैं। इतिहासकार डा0 एम पी जोशी ने भी लिखा है कि शिव की नगरी अल्मोड़ा के आठ द्वारों की रक्षा यही आठ भैरव करते हैं। इन मंदिरों की स्थापना उद्यानचंद के पुत्र चंद राजा ज्ञानचंद द्वारा करवाई गई थी।
इतिहासकारों ने स्वीकार किया है कि उत्तर दिशा में नगर के प्रवेश द्वार पर लक्ष्मेश्वर तिराहे के समीप स्थित खुटकुणी भैरव का ऐतिहासिक मंदिर निर्विवाद रूप से अष्ट भैरव में से एक है। जाखनदेवी के समीप भैरव का मंदिर भी अष्ट भैरव में एक है।
इसी प्रकार लाला बाजार के पास शै भैरव मंदिर है । इतिहासकार बद्रीदत्त पांडे ने उल्लेख किया है कि उद्यानचंद ने एक मकान बनवा कर कुंवर को यहां स्थापित किया। इ़स मंदिर को मनोकामना पूर्ण करने वाले मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। प्रत्येक शनिवार को सायं यहां परम्परागत वाद्य यंत्रों के साथ सामूहिक आरती का आयोजन होता है जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं।
बद्रेश्वर मंदिर से पूरब की ओर दानपुर भवन के पीछे एक भैरव शंकर भैरव के नाम से आसीन हैं।
थपलिया मोहल्ले में गौड़ भैरव का मंदिर स्थापित है। जगदीश्वरी प्रसाद ने अपनी पुस्तक कुमाऊं के देवालय में इनका उल्लेख किया है। उन्होंने इनको गौर भैरव के नाम से विहित किया है।
चौघान पाटा के समीप अष्ट भैरवों में एक मंदिर बाल भैरव का है। यह मंदिर भी चंद राजाओं के काल का बताया जाता है। कुछ लोग इन्हें आनंद भैरव के नाम से भी सम्बोधित करते हैं।
पल्टन फील्ड के पास गढ़ी भैरव विराजमान हैं जो दक्षिण दिशा के प्रवेश द्वार पर रक्षा के लिए स्थापित किए गए हैं। छावनी क्षेत्र में स्थापित यह मंदिर लालमंडी किले के पाश्र्व में स्थित है।
पल्टन बाजार में ही अष्ट भैरवों में एक बटुक भैरव का मंदिर बना है। इस मंदिर को भोलानाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। अत्यंत ख्याति प्राप्त इस मंदिर की गणना भी नगर के अष्ट भैरव में की जाती है।
रघुनाथ मंदिर के समीप खजांची मोहल्ले में मल्ला महल के उत्तर पूर्व की ओर काल भैरव मंदिर स्थापित है। एडम्स इंटर कालेज के समीप भी एक भैरव मंदिर है। इस प्राचीन भैरव मंदिर की स्थापना भी चंदवंशीय राजाओं के काल की मानी जाती है। इसे भी अष्ट भैरवों में एक बाल भैरव नाम से उच्चारित किया जाता है। कुछ विद्वानों ने सम्भावना व्यक्त की है कि सम्भवतः इनको ही आनंद भैरव कहा गया है। पूरे नगर में भैरव के 10 से अधिक मंदिर विभिन्न स्थानों पर हैं परन्तु विद्वान मूल अष्ट भैरव मंदिरों की वर्तमान स्थिति के सम्बन्ध मे एक मत नहीं हैं । आनंद भैरव तथा बाल भैरव के नाम से भी एक से अधिक भैरव मंदिर हैं। कैंट क्षेत्र में कटक भैरव नाम से भी एक प्राचीन भैरव मंदिर है।
ऐतिहासिक तथ्य है कि चंद शासकों द्वारा अल्मोड़ा नगर की स्थापना के समय ही लाल मंडी किले में रक्षक देवता के रूप में भैरव की भी स्थापना हुई थी। राजा रूद्रचंद ने भी मल्ला महल के निर्माण के समय महल परिसर में देवी मंदिर तथा भैरव मंदिर बनवाये थे। बाज बहादुर चंद ने नंदादेवी को यहीं प्रतिष्ठित किया था। यह भी उल्लेखनीय है कि अल्मोड़ा में स्थापित प्राचीन अष्ट भैरव मंदिर आकार तथा संरचना में अधिक बडे़ नहीं थे। ना ही उनमें भैरव की प्रतिमाऐं ही स्थापित की गईं थीं। प्राचीन मंदिरों की प्रतिमाओं के स्थान पर विशिष्ट आकार के पत्थरों की विधि विधान से पूजा कर उन्हें ही देवता के रूप में प्रतिष्ठित किया गया था। एक मात्र शै भैरव मंदिर ही ऐसा मंदिर है जिसके निर्माण में प्राचीन वास्तु परम्परा का ना केवल पालन किया गया अपितु इस मंदिर में प्रदक्षिणा पथ भी बनाया गया। हो सकता है कि वर्तमान मंदिर से पूर्व भी इस स्थान पर अन्य कोई छोटा मंदिर रहा हो जिसका बाद में जीर्णाेद्धार करवा कर बड़ा मंदिर बनवा दिया गया । यह भी कहा जाता है कि अल्मोड़ा में नेपाली मूल के ख्यातिप्राप्त व्यवसायी मोती राम शाह ने अपने इष्टदेव शै भैरव मंदिर की पुनःस्थापना की थी।
अब अधिकांश मंदिरों का जीर्णोद्धार कर आधुनिक निर्माण कर दिया गया है। वर्तमान के काल भैरव मंदिर में भी देवता को अंग्रेज कमिश्नर ट्रेल के समय में मल्ला महल से स्थानान्तरित कर पुनः प्रतिष्ठित किया गया है। एटकिंसन ने उल्लेख किया है कि राजा मोहन सिंह ने भैरव मदिर को भूमि गूंठ में चढ़ाई थी। इन भैरव मंदिरों के सम्बन्ध में सैकड़ों दंत कथायें हैं जिनका उनके भक्तों द्वारा उल्लेख किया जाता रहा है।
कुछ जानकार कहते हैं कि इन मंदिरों में से कुछ मंदिर पश्चातवर्ती हैं । ये मंदिर व्यक्तिगत हैं तथा बाद में बनाये गये।
यूं तो भैरव मंदिर में दुखों के निवारण,अनिष्ट का हरण करने की कामना से श्रद्धालु रोज जाते हैं लेकिन शनिवार को भैरव मंदिरों में खासी भीड़ रहती है।
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