बमन सुआल वैसे तो एक छोटे से गांव का नाम है जो अल्मोड़ा जनपद के पट्टी मल्ला लखनुपुर से 6 किमी की दूरी पर सुआल नदी तथा थमिया के गधेरे के पास स्थित है। लेकिन बमन सुआल गांव में स्थित एकादश रूद्र नाम का प्राचीन मंदिर समूह अपनी कला, पुरासम्पदा और सोैष्ठव के लिए बेजोड़ है। यह इस मंदिर का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि इतना महत्वपूर्ण मंदिर समूह पर्याप्त प्रचार के अभाव में उपेक्षित है।
थमिया के गधेरे और सुआल नदी का जहां संगम होता है उसी के पास सोलह प्राचीन मंदिरों का एक समूह है मंदिर समूह उत्तर तथा दक्षिण देा भागों में विभक्त है। उत्तर की ओर पांच मंदिर तथा दक्षिण में ग्यारह मंदिर है। उत्तर की ओर के पांच मंदिरों के समूह का मुख्य मंदिर त्रिनेत्रेश्वर महादेव है जिसके नाम पर इस पूरे समूह को त्रिनेत्रेश्वर मंदिर समूह कहा जाता है। जबकि शेष ग्यारह मन्दिरों के समूह को एकादशरूद्र कहा जाता है।
मंदिर के सम्बन्ध में एक रोचक कथा है -कहा जाता है कि यहां भगवती पार्वती ने परिहास में शिव की दोनों आंखे अपने हाथों से बन्द कर दीं। इससे समूचे विश्व में अंधेरा छा गया । तब इसी स्थान पर शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोला, अन्धकार दूर हुआ तथा संसार को पुनः प्रकाश मिला। शिव के तीन नेत्रों की उपस्थिति के कारण ही यह स्थान त्रिनेत्रेश्वर कहलाया।
इस समूह के सभी मंदिर पूर्वमुखी है। वर्तमान में इस मंदिर समूह के मंदिर अलग अलग नामों से जाने जाते हैं। इन्हे त्रिनेत्रेवश्वर, कार्तिकेय, उमा-महेश, बटुक भैरव तथा हर-हर महादेव के नामों से भी जाना जाता है।
इस समूह का मुख्य मंदिर त्रिनेत्रेश्वर महादेव है जो सुआल नदी तथा थमिया के गधेरे के कोने पर स्थित है। वलभी शैली के अनुरूप इस मंदिर में आयताकार गर्भगृह, अन्तराल तथा वर्गाकार मंडप का निर्माण किया गया है। भूमि तल से उपर की ओर मंदिर को भव्यता प्रदान करने के लिए विभिन्न अलंकरणों से सजाया गया है। मंदिर गर्भगृह में मुख्य देवता के रूप में शिवलिंग स्थापित है। मंदिर में लघुमंडप तथा भोगशाला की भी नवीन व्यवस्था की गयी है।
सामान्य जगती पीठ पर निर्मित मंदिर का वेदीबंध तीन क्षैतिज पट्टियों और एक नक्काशीहीन अन्तर्पत्र से सुसज्जित है। ऊपरी कोनों पर अलंकरणहीन स्तम्भों से युक्त सादी दीवारें निर्मित हैं। जंघा के ऊपर एक अन्तरपत्र छोडकर स्कन्ध वेदी के रूप में समतल पट्टी निर्मित की गयी है। मंदिर की बाह्य दीवारों को शिखर से अलग करने वाली पट्टी पर मध्यकालीन ब्राह्मी लिपी में मध्यकालीन लेख भी उत्कीर्ण है। इसके ऊपरी पाश्र्व चन्द्रशालाओं से अलंकृत हैं। स्कन्ध वेदी के उपर पोताकार गजपृष्ठाकृति शिखर के दोनो पाश्र्वो में त्रिमूर्ती युक्त चैत्य गवाक्ष सज्जित हैं। शिखर के ऊपर एक दूसरे की ओर पीठ और उत्तर दक्षिण दिशा में मुख किये दो गजसिंह विराजमान हैं। सम्पूर्ण शिखर पर्वतीय परम्परा के अनुरूप एक बड़े काष्ठ निर्मित तिब्बती शैली के छत्र से आच्छादित हैं।
यहां से एक जैन तीर्थकर की प्रतिमा भी प्राप्त हुई थी जो कभी उपेक्षित पड़ी थी। वर्तमान में यह प्रतिमा अल्मोड़ा संग्रहालय में रखी हुई है। त्रिनेत्रेश्वर मंदिर के निर्माण में शिल्पियों ने अपनी दक्षता का पूरा परिचय दिया है इसीलिए छोटा होते हुए भी यह मंदिर भव्य, संतुलित और आकर्षकहै।
इस मंदिर के पास ही दो अन्य देवालय भी है जो शिल्प की दृष्टि से एक दूसरे से अत्यधिक साम्य रखते है। इसमें गर्भगृह और दो स्तम्भों पर आधारित अर्ध मंडप बने है। सादी जगती पर एक एक सादी पट्टी कुम्भ -कलश तथा एक अन्य सादी पट्टी से वेदीबंध का निर्माण किया गया है। त्रिरथ जंघा भाग के उपरी व निचले सिरे पर एक-एक सादी पट्टियां निर्मित है । दीवारों व शिखर को एक सादा अन्तरपत्र विभाजित करता है। नागर शैली का त्रिरथ रेखा शिखर इसके उपर है। इसके चारो कर्ण तीन भूमि आमलकं द्वारा चार भागों में विभक्त हैं। शीर्ष पर चन्द्रिका, आमलसारिका व बिजौरे का निर्माण किया गया है। अर्धमंडप के स्तम्भ सुन्दर बनाये गये हैं । इसके निचले भाग को चतुष्कोणीय, मध्य भाग अष्टकोणीय तथा उपरी भाग वृत्ताकार है शीर्घ भाग को तोड़ों से सजाया गया है। अर्धमंडप के उपर सादी शुकनास शोभित है।
इस मंदिर में मूल देवता के रूप में शिवलिंग है।
बटुक भैरव तथा हर हर महादेव मंदिर सामान्य शैली के हैं। जबकि एकाश रूद्र और इसके पास की प्राचीन वास्तु खंडो से निर्मित नवीन धर्मशाला में भी सामान्य अलंकरणों का प्रयोग हुआ है। धर्मशाला में किसी प्राचीन मंदिर के अवशेष लगाये गये है। प्रवेश द्वार पारम्परिक अलंकरणों -फुल्लशाखा, नागशाखा और मणिबंध युक्त शाखाओं से अलंकृत है जबकि प्रवेश द्वार के निचले पाश्र्वौं में स्थापित परम पावन गंगा-यमुना है। यहां भी एक लेख उत्कीर्ण किया गया है। लकुलीश का अंकन भी इस स्थान को शिव के 28वें अवतार से सम्बद्ध करता है।
इन मंदिरों की निर्माणशैली को देखकर लगता है कि त्रिनेत्रेश्वर महादेव मंदिर ,हर हर महादेव और बटुक भैरव मंदिर समकालीन हैं जिनका निर्माण आठवीं- नवीं शती के आस पास हुआ होगा। मंदिरों के प्राचीन अवशेष भी यही इंगित करते है कि इस स्थान का प्राचीन महत्व भी कहीं ज्यादा रहा है। कलात्मकता और सुघड़ता में अद्वितीय प्राचीन मंदिर के अवशेष इन्हें जागेश्वर मंदिरों के शिल्प के समकक्ष रखते है। जागेश्वर में निर्मित मंदिरों की प्राचीन द्वार शाखाओं में भी समानता है। हांलांकि कुछ मंदिर बाद में निर्मित लगते है। जिनमें कार्तिकेय मंदिर और उमामहेश मंदिर है। इन्हें 14वी-15वी शती के आस पास निर्मित माना जा सकता है।
इस स्थान से अब तक अनेक मंदिर अभिलेख प्रकाश में आ चुके है।
यह कहा जा सकता है कि यह स्थान भी कभी धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण था जिसकी बाद में न जाने क्यों ख्याति कम हो गयी।