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सिद्ध शिवालय है अल्मोड़ा का बेतालेश्वर मन्दिर

बेतालेश्वर के नाम से प्रसिद्ध उत्तराखंड का सिद्ध बेतालनाथ शिव मंदिर अल्मोड़ा नगर के बेस चिकित्सालय से विकास भवन की ओर जाने वाले सड़क मार्ग पर नगर से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस सड़क मार्ग से मंदिर की पैदल दूरी 250 मीटर है।
मंदिर की विभिन्न दिशाओं में भनार गूंठ, रखोली, बाड़ी, सिमकुकुड़ी, तलाड़, सैनार, पहल व खत्याड़ी गाँव स्थित हैं । इन गाँवों का श्मशान घाट भी यहीं पर स्थित है।

दिनेश गोयल

यह शिव मंदिर सिद्ध शिव पीठ है। मंदिर में प्राकृतिक शिवलिंग है। शिव मंदिर के पास ही प्राकृतिक जल कुण्ड भी है।

बेतालनाथ का इतिहास बहुत प्राचीन है। यद्पि मंदिर का प्रारम्भिक इतिहास ज्ञात नहीं है तो भी यह माना जाता है कि यहां चंद राजवंश के समय में भी पूजा अर्चना का प्रचलन था तथा राजकोष से मंदिर को सहायता दी जाती थी। गोरखा शासन के समय में ही मंदिर में निरन्तर एवं विधिवत पूजा प्रारम्भ हई। प्रसिद्ध इतिहासकार एटकिन्सन ने हिमालयन गजेटियर में बेतालेश्वर मंदिर में लगने वाले मेलों का उल्लेख किया है।

हिमांशु साह

मंदिर के बाहर मध्य काल की प्राचीन चक्रिका ,गणेश, लिंग एवं भग्न प्रतिमाऐं संजोई गई हैं जिनसे प्रतीत होता है कि आधुनिक निर्माण से पूर्व भी इस स्थान पर कोई प्राचीन एवं भव्य मंदिर अवश्य रहा होगा।

मान्यता है कि उत्तराखंड के अन्य प्राचीन शिव मंदिरों की भांति ही निसंतान महिलाओं द्वारा पुत्र कामना हेतु इस मंदिर में रात भर हाथ में जलता हुआ दीपक लेकर अर्चन किया जाता था। शिव कृपा से उन्हें पुत्र प्राप्ति होती भी थी।

ब्रिटिश काल में यहाँ पर नेपाली महाराज ने धूनी रमाई व सेवा कार्य किया। वह अपने अन्तिम समय तक यहां पर रहे। उन्होंने जनमानस के सहयोग सेे मंदिर व आस-पास के क्षेत्र का जीर्णोद्वार किया। महाराज की समाधि भी इसी क्षेत्र में विद्यमान है।

दिनेश गोयल

सन् 1945 के आस-पास महात्मा सम्पूर्णानन्द जी के एक शिष्य जिन्हें दनपुरी बाबा के नाम से जाना जाता था लगभग 40 वर्ष तक यहाँ पर रहे। सन् 1984 में उन्होंने ने देह त्याग दिया। उनकी समाधि मंदिर परिसर में विद्यमान है।

हिमांशु साह

इसके बाद संत किशनदास भी इस मंदिर में रहे और उनके द्वारा सेवा व जीर्णोद्वार कार्य किये गये।वर्ष 1990 के आस-पास देवप्रयाग से महात्मा शंकर गिरी महाराज इस मंदिर में आये जो नेपाल मूल के थे। उनके द्वारा मंदिर सौन्दर्यीकरण हेतु जनमानस को प्रेरित किया गया। भक्तों के सहयोग से मंदिर के बगीचे में महात्मा जी के लिए एक कुटिया का निर्माण कराया गया जो उनकी तपोस्थली है। उनकी प्रेरणा से मंदिर के मुख्य हॉल का निर्माण व अन्य मंदिर सौन्दर्यीकरण् कार्य हुए। सन् 2016 मे उन्होंने यहीं देह त्याग किया। महाराज की समाधि भी मंदिर परिसर में विद्यमान है। उनकी एक भव्य प्रतिमा भी मंदिर परिसर के हॉल में रखी गयी है।

लम्बे समय से मंदिर में पूजा अर्चना का पारम्परिक कार्य ग्राम गूंठ के कुछ परिवार करते हुए आ रहे हैं।
वर्ष 2017 में भक्तों के सहयोग से मंदिर समिति का गठन किया गया। वर्तमान में संत श्री कैलाश गिरी मंदिर सेवा का कार्य कर रहे हैं। मंदिर में बैसाखी मेला, सामूहिक शिवार्चन, माघ खिचड़ी, शिवरात्रि मेला व होली जैसे अवसरों पर धार्मिक अनुष्ठान व आयोजन समयानुसार होते रहते हैं।

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चन्द्रशेखर तिवारी
चन्द्रशेखर तिवारी
2 years ago

‘हिमवान’ वेब पत्रिका का यह बहुत ही अभीष्ट प्रयास है कि वह कुमाऊँ हिमालय के समाज, संस्कृति, कला व इतिहास से जुड़े अनेक महत्वपूर्ण पक्षों पर सुरुचिपूर्ण जानकारी समय-समय पर देता रहता है। इस कार्य मे कुमाऊँ की संस्कृति, शिल्प-कला व इतिहास पर गहरी पकड़ रखने वाले अध्येता और स्वतंत्र पत्रकार श्री कौशल सक्सेना जी व उनकी टीम का बहुत बड़ा योगदान है। इसके लिए वे साधुवाद के पात्र हैं।

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