“काली गंगा में बगायो गोरी गंगा में उतरो तब गोरिया नाम पडो..” यह लोक काव्य की पंक्तियां कुमाऊँ के न्यायकारी लोकमानस के आराध्य देवता गोल्ल अथवा गोरिल के जागर में जगरियों द्वारा गायी जाती हैं । गोल्ल को कुमाऊं में स्थान व बोली के आधार पर अनेक नामों से पुकारा जाता है । वे चौधाणी गोरिया, ध्वे गोल्ल, हैडि़या गोल्ल, गोरिल, दूधाधारी निरंकार तथा घुघुतिया गोल्ल आदि नामों से लोक मान्यताओं में जीवन्त हैं ।
गोल्ल की कथा प्राचीन मानी जाती है । लोक विधाओं के मर्मज्ञ नवीन बिष्ट कहते हैं- वाचिक परम्परा में जीवन्त इस महिमामयी लोक देवता की कहानी इतनी लम्बी यात्रा के दौरान देशकाल परिस्थिति के अनुसार कहीं-कहीं पर परिवर्तित अवश्य हुई होगी लेकिन मूलभाव व कथा वृतांत की आत्मा एक है । गोल्ल का लोक मानसपटल पर अंकित चित्र अतीत में जितना लोक कल्याणकारी और न्यायकारी था वर्तमान में भी वहीं श्रद्धा और आत्मीयता के साथ लोक कल्याण की अपेक्षा भाव का चित्र स्थानीय लोगों के मस्तिष्क में गहराया हुआ है । कुमाऊँ के लोग जितनी श्रद्धा स्नेह से गोल्ल की आराधना करते हैं उतने ही आत्मीय अधिकार से अनिष्ट को दूर करने की अपेक्षा भी गोल्ल से रखते हैं ।
जिसे प्राचीनकाल में राजदरबार से भी न्याय नहींमिलता था वह चैाघाणी गोरिया को धात, आवाज लगाकर न्याय की फरियाद करता था । अब भी न्यायालयों के चक्कर से पड़ने के मुकाबले कुमाऊँ का ग्रामीण हो या शहरी गोरिया से ज्यादा न्याय की उम्मीद करता है ।
अल्मोड़ा नगर की सीमा पर पिथौरागढ.-अल्मोड़ा मार्ग पर बसा चितई ग्राम गोल्ल की पीठ माना जाता है । चितई के अतिरिक्त भी गोल के कई मंदिर स्थान-स्थान पर स्थापित किये गये हैं ।। चम्पावत में गोरलचौड़ का गोरिल मंदिर गोल्ल देवता का मूल मंदिर माना जाता है ।
चितई मंदिर में गोल्ल को गैार भैरव के रूप में भी पूजा जाता है । मंदिर में सादे कागज में लिखे प्रार्थना पत्र के अतिरिक्त बकायदा कोट फीस स्टाम्प लगाकर गोरिया से प्रार्थना करने वाले प्रार्थनापत्र हजारों की संख्या में आज भी टंगे देखे जा सकते हैं । कुमाऊँ में यह विश्वास है कि यदि सर्वोच्च न्यायालय से भी न्याय न मिला तो गोरिया के दरबार में पुकार की जायेगी । यह भी सच है कि न्यायालय के फैसले के मुकाबले यहाँ का आदमी गोरिया के न्याय को ज्यादा आसान रास्ता समझता है ।
कुमाऊँ में कलबिष्ट, ऐडी, गंगनाथ आदि यूँ तो कई लोक देवता ऐसे हैं जिन्होंने क्षेत्र और जाति की सीमायें पार कर लोक देवता की मान्यता हासिल की है किन्तु उनमें भी गोल्ल की मान्यता सबसे ज्यादा ही है ।
गोल्ल के अनेक प्रसिद्ध मंदिर हैं जिनमें से नैनीताल जनपद में भवाली के पास घोड़ाखाल और अल्मोड़ा में चितईं, चम्पावत में गोल्ल मंदिर की मान्यता सर्वाधिक है ।
चंद राजा जब अपनी राजधानी चम्पावत से अल्मोड़ा लाये तब गोल्ल ने स्वप्न में जयकिशन पंत को निर्देश दिया कि उनकी पीठ चितई में स्थापित की जाये । सम्भवतः तभी यहां गोल्ल का मंदिर स्थापित कर पूजन की प्रारम्भ हुआ। प्रस्तर निर्मिंत पुराने देवालय का पुनःनिर्माण किया गया है। चितई में मूल मंदिर के जीर्णाेद्धार का समय 1915 ई० माना जाता है । विश्वास किया जाता है कि गोल्ल को सर्वप्रथम इसी स्थान पर ईश्वरीय चेतना की अनुभूति हुई इसीलिये इस गांव का नाम चितई पड़ा ।
गोल श्वेत अश्व की सवारी करते है । वे धनुर्धारी हैं और राजसी वेषधारण करते हैं । चितई मंदिर के गर्भगृह में भी उनकी प्रस्तर निर्मित सफेद ऐसी ही प्रतिमा स्थापित है । गर्भ गृह में ही गोल्ल की माँ कालिंका तथा सेवकों की प्रतिमाएं भी है । बाहर की ओर छोटा सा मंदिर कलुआ मसान का है । यहा भीं दीप प्रज्जवलित किया जाता है ।
मंदिर अष्ट कोणीय है । पर्वतीय परम्परा के अनुरुप प्रदक्षिणा के लिये आच्छादित प्रदक्षिणा पथ भी बनाया गया है । प्रदक्षिणापथ से थोड़ी दूर ही हवन कुंड भी बनाया गया है । चितई में गोल्ल की पीठ में मनौती मानने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ हर समय लगी देखी जा सकती है। पशुबलि प्रथा अब पूरी तरह से बंद कर दी गई है। श्रद्धालु पूजन, नारियल तथा मिष्ठान्न से भी अपनी मनौती मनाते हैं । मनौती पूरी होने पर तथा अनिष्ट दूर होने पर लोग घंटियां चढ़ाकर गोल्ल के प्रति अपनी श्रद्धा और आभार प्रकट करते हैं । गोल्ल की शरण में न्याय की आवाज लगाने वालों में खासे पढ़े लिखे बुद्धिजीवी लोग भी हैं । अक्सर घर में बीमारी अथवा किसी संकट से त्रस्त और मानसिक अशांति दूर करने, मनौतियां मनाने अथवा संतान प्राप्ति की कामना के साथ लोग गोल्ल के मंदिर में आते हैं ।नवविवाहित जोड़े भी यहां आकर गोल्ल से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
जन विश्वास हैं कि गोल्ल पीडि़त का पक्ष लेकर अन्यायकारी का दमन करते हैं । श्रद्धालु कागज में अर्जी लगाकर चितई मंदिर में गोल्ल के सामने अपना पक्ष रख न्याय मांगते हैं । गोल्ल मंदिर चितई में ऐसे ढेरों प्रार्थना पत्र प्रतिदिन डाक से भी प्राप्त होते हैं जिनमें लिखा होता है कि वे इतनी सामर्थ नहीं रखते कि स्वंय गोल के दरबार तक आ सकें इसलिए वे अपनी अर्जी को डाक से भेज रहे हैं । इन चिट्रिठयों से यह भी अपेक्षा की जाती है कि गोल उनकी प्रार्थना को जरूर सुनेंगे और अपना न्याय पीडि़त के पक्ष में कर दोषी को दंड देंगे । कई पत्रों पर कोर्ट फीस टिकट भी लगे होते हैं । पुजारी इन पत्रों को मंदिर में तार से टांग देते हैं । बाद में कार्यसिद्ध होने पर लोग प्रायः स्वंय ही हाजिर होते हैं।
श्रद्धालुओं द्वारा यहां पीतल की घंटियां चढाई जाती हैं।वर्ष 2003 में इसी प्रकार गोल्ल देवता के आगे मांगी गई मनौती पूर्ण होने पर अल्मोड़ा के व्यापारी संजीव अग्रवाल द्वारा पांच सौ किला का पीतल का घंटा मंदिर में चढ़ाया गया था। यह घंटा भी लोगों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। चितई मंदिर में लटकी हजारों हजार घंटियां गोल्ल के प्रति लोगों के श्रद्धा और विश्वास की जीवन्त प्रतीक हैं। गोल्ल की लोकप्रियता का आभास इसी तथ्य से लग जाता है कि अल्मोड़ा आने वाले लोग इस मंदिर में आकर देवता के दर्शन करने का प्रयास जरूर करते हैं ।
पिछले कुछ वर्षां से इस मंदिर में विवाह भी कराये जाने लगे हैं। चितई में तो अब छोटा सा बाजार ही विकसित हो गया है।