अल्मोड़ा नगर की बाहरी सीमा पर दुगालखोला के पास पुलिस लाइन के नजदीक पहुंचने वाले मोटर मार्ग में सड़क से कुछ नीचे ऐतिहासिक खगमरा कोट नामक प्राचीन स्थल है जिसे चम्पावत के चंदवंशीय शासक भीष्म चंद ने 1559-60 में कत्यूरी राजाओं से छीन कर अल्मोड़ा में अधिकार करने के उपरांत राज्य का प्रथम प्रशासनिक केन्द्र बनाया था। अल्मोड़ा में चंद वंश का इतिहास इसी स्थान से शुरू होता है।
खगमरा कोट कत्यूर कालीन रहा होगा जो अल्मोड़ा में चंदों की राजधानी के स्थानान्तरण, यहां बसासत के विधिवत शुरू होने और चंद राजा भीष्मचंद के खगमरा कोट किले के अन्दर वध किये जाने का भी साक्षी रहा । राजा भीष्ष्मचंद के साथियों का भी इसी किले में वध किया गया था।
भीष्म चंद के वध के उपरांत उसके पुत्र बालो कल्याणचंद द्वारा खगमरा कोट को नितांत असुरक्षित देखकर वर्तमान छावनी क्षे़त्र में नये राजनिवास का निर्माण प्रारम्भ किया गया।। वर्ष 1563 में बालो कल्याण चंद ने यहीं से अपनी राजधानी अल्मोड़ा नगर में स्थानान्तरित की थी।हांलांकि खगमरा में इस स्थल पर अब उस कोट के कोई अवशेष मौजूद नहीं हैं।
अब इस भव्य तथा सुरम्य स्थली पर एक प्रसिद्ध वैष्णव मंदिर है जिसे खगमरा कोट सत्यनारायण मंदिर कहा जाता है। देवी भगवती तथा शिव के मंदिर तो यहां प्राचीन काल से ही हैं कालान्तर में सीता- राम , लक्ष्मी- नारायण, सत्य नारायण, राधा- कृष्ण और हनुमान के विग्रहों की भी स्थापना की गई । हनुमान यहां सिद्ध हनुमान के रूप में जाने जाते हैं।
मुख्य मंदिर सीता-राम, शेषशायी विष्णु, राधा- कृष्ण बलराम तथा बाल रूप गणेश का है। एक अन्य मंदिर में शीतला देवी, सिंह वाहिनी दुर्गा एवं भैरव विग्रह को भी स्थापित किया गया है। इस मंदिर को शीतला देवी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। बगल के मंदिर में शिव परिवार ,गणेश,कार्तिकेय, पार्वती तथा लिंग स्थापित है। अष्ट दिक्पाल भी यहां स्थापित किये गये है। मंदिर में बाबा मोहन दास तथा किशोरी दास के भव्य चित्र भी हैं। मंदिर में खाकी बाबा की चरण पादुकाऐं स्थापित हैं।
इतिहास प्रसिद्ध इस स्थान को वेैष्णव संतों के प्रवास ने अत्यंत प्रतिष्ठित बना दिया।श्री जगदीश्वरी प्रसाद जोशी ने उल्लेख किया है कि प्रसिद्ध संत खाकी बाबा यहां लगभग पचास वर्ष तक रहे। सम्भवतः वर्ष 1920 के आसपास भी वे अल्मोड़ा में ही थे। उनके देहावसान के कुछ वर्षों के अन्तराल के उपरांत लगभग 35 वर्ष तक यहां रहकर श्री मोहनदास बाबा वर्ष 1955 में समाधिस्थ हुए। उन्होंने लगभग एक सौ वर्ष का जीवन प्राप्त किया था। उनके पश्चात वर्ष 1957 में रामभक्त बाबा किशोरीदास ने यहां आकर समूचे स्थल को अत्यधिक सुन्दर, रमणीक और आकर्षक बना दिया। बाबा किशोरी दास ने वर्ष 2000 में शरीर छोड़ा। उन्होंने प्राचीन मंदिरों का जीर्णाेद्धार करवाया तथा विशाल यज्ञ वेदिका को भी स्थापित करवाया था। इस मंदिर के पास ही एक प्राचीन नौला भी है।
मंदिर में गंगा दशहरा, रामनवमी, तुलसी विवाह, गुरू पूर्णिमा तथा बाबा किशोरीदास की पुण्यतिथि को पर्व की भांति आयोजित किया जाता है।मंदिर की व्यवस्था न्यास द्वारा की जाती है।