नन्दादेवी परिसर में तीन देवालय विद्यमान हैं । इनमें से दो मंदिर उद्योतचन्देश्वर तथा पार्वतेश्वर मंदिर वास्तुकला की दृष्टि से पुराविदों एवं स्थापत्य में रुचि रखने वालों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र बने हैं । तीसरा देवालय जिसमें नन्दादेवी की प्रतिमाओं को स्थापित लिया गया है बाद की संरचना है । पार्वतेश्वर मंदिर का निर्माण राजा उद्योतचंद ने अपनी प्रिया पार्वती के नाम से किया था जबकि दीपचंदेश्वर का निर्माण राजा दीप चंद ने किया ।
पार्वतेश्वर मंदिर देवकुल शैली में स्थापित है । इस शैली में मुख्य मंदिर का निर्माण कर उसके पास छोटे-छोटे देवालय बनाने की परम्परा है जो एक रक्षक दीवार से घिरे होते हैं । मुख्य मंदिर का प्रांगण ही प्रदक्षिणा पथ का भी कार्य करता है । कहा जाता है कि इस प्रकार के देवालयों की निर्माण शैली का विकास वैदिक आश्रमों से हुआ ।
पार्वतेश्वर मंदिर का निर्माण काल सत्रहवीं शती है । मूल मंदिरों का निर्माण राजा उद्योत चंद ने वर्ष 1690-91 में किया था। मंदिर सर्वतोभद्र शैली का है जिसके चारों दिशाओं में चार द्वार बने हैं । इसके गर्भगृह में भी शिवलिंग स्थापित है ।
मंदिर का उध्र्व विन्यास शिखर शैली का त्रिरथ रेखा शिखर है जिसमें वेदीबंध, उभार सहित जंधा, चार भूमि आमलकों से विभाजित रेखा शिखर, उध्र्व ग्रीवा, आमलकशिला तथा कलश बनाये गये हैं। शिखर का नक्काशीयुक्त काष्ठ छत्र बारह स्तम्भों पर आधारित है । शुकनास पर पश्चिम की ओर गजसिंह हैं ।
वेदीबन्ध अलकृतं अन्तरपत्रों एवं उपानों द्वारा सजाया गया है । इनमें गज, अश्व, सिंह द्वारा मृग आखेट, नाग-मिथुन, मछली तथा पक्षी बनाये गये हैं । सामान्य जन-जीवन, राजदरबार, सुरागोष्ठियां आदि भी सम्मिलित हैं । हाथियों का युद्ध, सिंह द्वारा मृग का शिकार, सुरापान करते राजपुरुष, सुरबालायें आदि अति सुन्दरता के साथ उत्कीर्ण किये गये हैं । अन्तराल की रथिकाओं में विभिन्न देवी-देवता बनाये गये हैं । इनमें मेढे पर आरूढ़ अग्नि, मृग पर आरूढ़ वायु, गज पर इन्द्र, त्रिशूल सहित शिव, उमा-महेश तथा ब्रह्मा की प्रतिमाये हैं । मिथुन दृश्य भी बनाये गये हैं ।
उत्तरी कोने पर स्थापित शिव मंदिर का निर्माण पार्वतेश्वर मंदिर के पश्चात किया गया है । इसकी शेैली भी सर्वतोभद्र है । उक्त देवालय के चारों और अन्तराल के शिखर भी नागर शेैली में बनाये गये हैं । इसका मुख्य द्वार भी पश्चिम की ही ओर है । कभी शुकनास पर गजसिंह स्थापित था । मंदिर के जंघा भाग की भित्तियों पर भी चित्र उकेरे गये हैं। तीसरे जिस मंदिर में नन्दा देवी प्रतिमायें रखी गयीं है वह शिल्प, शैली इत्यादि की दृष्टि से साधारण है । पटालों से आच्छादित विशाल कक्ष स्तम्भों पर आधारित है । इसके वितान को सोपान में खिले कमल से सुसज्जित किया किया गया है ।
वर्ष १८१५ में ट्रेल कमिश्नर द्वारा नन्दा प्रतिमाओं को मल्लामहल \(वर्तमान कचहरी) से उठाकर इस मंदिर में रखवा दिया गया, तब से यह मंदिर नन्दादेवी के नाम से जाना जाता है । मंदिर के मंडप में नन्दा सहित दो अन्य देवी प्रतिमायें रखी हुई हैं । पास में ही एक प्राचीन गणेश प्रतिमा भी स्थापित है । प्रतिवर्ष यहाँ कुमाऊँ क्षेत्र का सबसे बड़ा नंदादेवी मेला लगता है।