हिमालय की भारत के सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। स्वामी विवेकानंद तो हिमालय की इस आध्यामिक भूमिका के हमेशा ही प्रशंसक रहे। उन्होने कुमाऊँ हिमालय की चार बार यात्रायें की। अल्मोड़ा पर तो वे इतने रीझे कि उन्होंने तत्कालीन अल्मोड़ा जिले में अद्वैत आश्रम मायावती की स्थापना की तथा अल्मोड़ा में कर्मयोगी सन्यासियों के लिए विवेकानंद कुटीर की स्थापना की प्रेरणा दी। स्वामी जी का अल्मोड़ा के लिए यह मोह एक तो काकड़ीधाट में प्राप्त दिव्यज्ञान के कारण रहा दूसरा कसारदेवी पर्वत माला की गुफा भी उनकी साधना स्थली रही। हिमालय में प्राप्त आध्यात्मिक उर्जा को सतत भाव से ग्रहण किया जाये इसलिए वे महिलाओं के लिए भी हिमालय में एक आश्रम की स्थापना करना चाहते थे। उनका विचार था कि मातृशक्ति ही इसका प्रसार देश एवं समाज के हित और उत्थान के लिए अन्य क्षेत्रों में कर सकती थी। सम्भवतः उतिष्ठितः भारत के मूल विचार की प्ररेणा भी उन्हें अल्मोड़ा से ही प्राप्त हुई। उनके द्वारा दिये गये भाषण की श्रंखला भी कोलम्बो से अल्मोड़ा के नाम से प्रकाशित की गयी।
शिकागो में 1893 में दिये गये ऐतिहासिक भाषण के बाद ही स्वामी जी का स्वप्न बन गया था कि भारत वर्ष को आध्यात्मिक रूप से उपर उठाया जाये। उनका विचार था कि इस कार्य के लिए जब तक भारत की महिलाओं को आगे नहीं लाया जाता तब तक सार्थक परिणाम निकलने कठिन हैं। नारी शक्ति के माध्यम से ही भारत को शिक्षित और ज्ञानवान बनाया जा सकता है। मातृशक्ति ही इसका प्रसार देश एवं समाज के हित और उत्थान के लिए अन्य क्षेत्रों में कर सकती थी। स्वामी जी के गुरू स्वामी रामकृण का यह भी सपना था कि महिलाओं की आध्यात्मिक शक्ति को जाग्रत करने के लिए हिमालय में एक केन्द्र की स्थापना की जाये। स्वामी विवेकानंद के इस स्वप्न को साकार होने में उनकी पहली अल्मोड़ा यात्रा के बाद 106 वर्ष लगे। शारदामठ दक्षिणेश्वर कलकत्ता ने इसके लिए 1996 में अल्मोड़ा में स्वामी जी के तपस्या स्थल कसारदेवी पर्वत श्रंखला में शारदामठ की स्थापना के लिए 40 नाली भूमि क्र्रय की गयी। शारदामठ की हिमालय क्षेत्र में स्थापित यह प्रथम इकाई है। आश्रम का उद्देश्य है कि कि इस क्षेत्र में महिलाओं तथा बच्चों की स्थितियों में सुधार किया जाये तथा उन्हें निशुल्क शिक्षा तथा चिकित्सा सुविधा दी जाये तथा आध्यात्मिक रूप से भी सशक्त बनाया जाये।
वर्ष 1998 से इस आश्रम के निर्माण का कार्य प्रारम्भ हुआ। वर्तमान में कसारदेवी की पवित्र पर्वत भूमि पर यह आश्रम स्थापित है। ऊपरी क़क्ष में मंदिर एवं ध्यान केन्द्र है जबकि नीचे कक्ष में आश्रम की संवासिनियां निवास करती हैं। पिछले वर्षो में आश्रम ने निशुल्क स्वास्थ शिविर चलाये हैं। महिलाओं को आध्यात्मिक रूप से सशक्त करने के लिए भी आश्रम सक्रिय है।
श्री सारदा मां कीं पुण्यतिथी पर अनेक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। आध्यात्मिक कार्यकलापों के अतिरिक्त इनमें विभिन्न विद्यालयों के बच्चों भी भाग लेते हैं। आश्रम की ओर से श्रद्धालओं के लिये एक सामूहिक भोज का भी आयोजन होता है