शिव रूप भैरव रक्षक देवता हैं। भारत वर्ष के अनेक किलों में उनकी स्थापना गढ़ के रक्षक के रूप में की गई है। अल्मोड़ा नगर में भी रक्षक देवता के रूप में उनकी स्थापना नगर के प्रमुख स्थानों में अष्ट भैरव रूप में की गई थी।
अल्मोड़ा में अष्ट भैरव मंदिरों की स्थापना का सम्बन्ध चंद शासक उद्योत चंद (1678-98) के समय में राजदरबार के एक षड़यंत्र में लोक देवता भोलानाथ , उनके प्रति आस्था रखने वाली साध्वी तथा उसके अजन्मे शिशु की हत्या एव उनके शरीर के अंगों को नगर के विभिन्न स्थानों पर भूमिगत करने के कथानक से जुड़ा है। जिन स्थानों पर उनके शरीर के कटे अंग भूमिगत किये गये उन्हीं स्थानों पर ही बाद में अष्ट भैरव मंदिरों की स्थापना की गई। चंद शासकों के समय में स्थापित अष्ट भैरव अल्मोड़ा नगर के रक्षक माने जाते हैें।
इतिहासकार स्व0 बद्रीदत्त पांडे के अनुसार कालभैरव, बटुक भैरव, बाल भैरव, शै भैरव, गढ़ी भैरव, आनंद भैरव, गौर भैरव और खुटकुणी भैरव ही अल्मोड़ा के अष्ट भैरव हैं।
यह उल्लेखनीय है कि अल्मोड़ा में स्थापित प्राचीन अष्ट भैरव मंदिर आकार तथा संरचना में अधिक बड़े नहीं थे। उनमें भैरव की प्रतिमाऐं भी स्थापित नहीं की गईं थीं। प्रतिमाओं के स्थान पर विशिष्ट आकार के पत्थरों की विधि विधान से पूजा एवं प्राण प्रतिष्ठाकर उन्हें ही देवता के रूप में इन प्राचीन मंदिरों में प्रतिष्ठित किया गया था।
इन्हीं अष्ट भैरव में उल्लेखित शै भैरव का प्रसिद्ध मंदिर लाला बाजार के पास मिलन चौक के पीछे स्थित है। जिसका निर्माण चंदवंशीय राजा उद्योत चंद ने कराया था। इतिहासकार बद्रीदत्त पांडे ने उल्लेख किया है कि उद्योत चंद ने एक मकान बनवा कर कुंवर को यहां स्थापित किया जबकि एटकिंसन ने उल्लेख किया है कि राजा मोहन सिंह ने भैरव मदिर को भूमि गूंठ में चढ़ाई थी।
यह भी कहा जाता है कि नेपाली मूल के ख्याति प्राप्त व्यवसायी मोती राम शाह ने अल्मोड़ा में अपने इष्टदेव शै भैरव के मंदिर की स्थापना की थी। मोतीराम साह परिवार के स्व0 नीरनाथ साह ने इस लेखक को बताया था कि इस स्थान पर पहले से वि़द्यमान एक मंदिर के जीर्णोद्धार का आदेश उनके पूर्वज मोतीराम साह को स्वप्न में स्वयं शै भैरव ने ही दिया था। हो सकता है कि वर्तमान मंदिर से पूर्व भी इस स्थान पर अन्य कोई चंदकालीन मंदिर रहा हो जिसका बाद में जीर्णोद्धार करवा कर मोती राम साह ने बड़ा मंदिर बनवा दिया।
शै भैरव मंदिर के निर्माण में प्राचीन वास्तु परम्परा का पालन किया गया है। गर्भगृह में देवता को स्थापित किया गया है जिसके बाहर अर्धमंडप बनाया गया है। मंदिर निर्माण के समय प्रस्तर निर्मित सुदृढ़ स्तम्भो पर काष्ठ निर्मित छत को पटालों से आच्छादित किया गया था। पश्चिमाभिमुख इस मंदिर में परिक्रमा के लिए प्रदक्षिणा पथ भी बनाया गया है ।
इस मंदिर में पूर्व में चढ़ाया गया एक धातु निर्मित अभिलिखित घंटा वर्तमान में राजकीय संग्रहालय अल्मोड़ा की दर्शक दीर्घा में प्रदर्शित है। इस घंटे पर तीन लाइनों का संस्कृत मेें लेख उत्कीर्ण है।
पिछले वर्षो में मूल मंदिर के स्वरूप से छेड़छाड़ न करते हुए मंदिर के सुदृढ़ीकरण के अनेक कार्य करवाये गये हैं। वर्ष 1991 में प्राचीन मंदिर के फर्श एवं पीपल के चबूतरे का जीर्णोद्धार कार्य हुआ। समय-समय पर मंदिर परिसर में स्थानीय व्यापारी मुरारी अग्रवाल द्वारा छत तथा अन्य जीर्णोद्धार के कार्य भी सम्पन्न करवायेे गये हैं ।
कुमाऊँ मंडल की ऐतिहासिक राजजात यात्रा आयोजन वर्ष 2000 के बाद प्रत्येक शनिवार को सुन्दरकांड एवं सूर्यास्त के समय परम्परागत वाद्य यंत्रों के साथ शै भैरव – शनिदेव की सामूहिक आरती का प्रारम्भ किया गया। अब इस आरती में भाग लेने सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु शनिवार को मंदिर परिसर में पहुंचते एवं प्रसाद ग्रहण करते हैं।
वर्ष 2001 में मंदिर परिसर में शनिदेव मंदिर की भी स्थापना की गई। वर्ष 1991 से भैरव अष्टमी के वार्षिक आयोजन , भंडारे एवं वर्ष 2001 से शनि जयन्ती के आयोजन एवं शनि भंडारे की भी शुरूवात की गई है।
शै भैरव के चमत्कारों के सम्बन्ध में अनेक कथायें उनके भक्तों में प्रचलित हैें। शै भैरव के भक्तों का मानना है कि इस मंदिर में की गई मनौतियो और फरियादों की त्वरित सुनवाई होती है। इसलिये इसे मनौती पूर्ण करने वाला मंदिर भी माना जाता है। मनौती पूर्ण होने पर सात्विक प्रसाद चढ़ाने की परम्परा है। अन्य अष्ट भैरव मंदिरों की ही भांति इस मंदिर में भी पूस माह के रविवार को रोट भेंट करने की परम्परा है। माघ महीने में माघी खिचड़ी भी चढ़ाई जाती है। अन्य अवसरों पर खीर, गुड़, जलेबी इत्यादि का प्रसाद चढ़ाया जाता है। अनेक भक्त मनौती पूर्ण होने पर प्रतिमाओं पर सिन्दूर लेपन करवाते तथा माला एवं फूलों के हार चढ़ाते हैें।
मंदिर में भैरव अष्टमी एवं शनि जयंती के अवसरों के अतिरिक्त भी समय-समय पर भंडारे एवं माघ महीने में माघी खिचड़ी का आयोजन होता है।मंदिर में विश्वकर्मा जयन्ती का भी आयोजन किया जाता है।
बहुत सुंदर आलेख। यह महत्वपूर्ण आलेख लेखक द्वारा ऐतिहासिक तथ्यों व स्थानीय जानकार लोगो द्वारा प्रदत पुष्ट सूचनाओं पर आधारित है।निश्चित ही यह आलेख आम लोगों के साथ ही अध्येताओं व रुचिवान लोगों के लिए बहुत उपयोगी है।लेखक श्री कौशल सक्सेना जी इसके लिए साधुवाद के पात्र हैं।
धन्यवाद।
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पहली बार शे भैरव पर आलेख पढ़ने का मौका मिला। जो काफी ज्ञानवर्धक है। हिमवान की वेबसाइट एवम लेखक श्री कौशल सैक्सेना जी का सादर धन्यवाद।