अल्मोड़ा चंद राजाओं के सपनों का शहर है। चंद राजाओं ने इस नगर को बसाने, सुन्दर और व्यवस्थित बनाने, जल प्रणालियों को सुरक्षित रखने तथा एक सांस्कृतिक नगर के रूप में स्थापित करने में अपना अप्रतिम योगदान दिया था। उनके द्वारा बनवाये गये नौले-धारे आज भी अल्मोड़ा की जीवन रेखा बने हुए हैं।
अल्मोड़ा नगर के बसने की प्रक्रिया हालांकि वर्ष 1525 से प्रारम्भ हो गयी थी तथापि अल्मोड़ा की राजनैतिक कथा लगभग साढ़े चार सौ साल पहले चम्पावत से चंद वंश के राजा भीष्म चंद के अल्मोड़ा आगमन तथा वर्ष 1560 में नगर के पूर्वी छोर पर स्थित खगमरा कोट पर अधिकार से शुरू होती है। तब तत्कालीन खगमरा कोट पर कत्यूरी वंश के एक छोटे से राजा का अधिकार था। राज्य के भविष्य में विस्तार तथा केन्द्रीय स्थान पर राजसत्ता का केन्द्र स्थापित करने की योजना के अन्तर्गत राजा भीष्मचंद ने इस कोट को विजित करने के बाद अल्मोड़ा को राजधानी बनाने का सपना देखा।
लेकिन राजधानी का कार्य प्रारम्भ होने से पहले ही खगमरा कोट में उसका वध कर दिया गया। जिसके बाद उसके पुत्र बालोकल्याण चंद ने खगमरा कोट को नितांत असुरक्षित पाकर वर्तमान छावनी क्षेत्र में नये दुर्ग का निर्माण कर अल्मोड़ा को राजधानी के रूप में विकसित किया। वर्ष 1563 में राजधानी का विधिवत स्थानांतरण खगमरा से अल्मोड़ा में हुआ। हालांकि खगमरा कोट के अवशेष अब नहीं मिलते । खगमरा कोट के स्थान पर अब वैष्णव मंदिर है।
बालोकल्याणचंद ने अपना अधिकारिक निवास तथा कार्यालय वर्तमान पल्टन बाजार स्थित भोलानाथ मंदिर के पीछे नैल के पोखर में वर्ष 1563 में बनवाया था । इतिहासकार इसे नगर के अन्दर बना पहला चंद कालीन अधिकारिक राज भवन मानते हैं। परन्तु दुर्भाग्य से अब इसके भी अवशेष नहीं मिलते। छावनी में स्थापित लालमंडी किला भी इन्होेंने ही बनवाया था। नगर के दक्षिण छोर के समीप के बाजार की स्थापना भी बालेाकल्याण चंद द्वारा ही की गई थी। पलटन बाजार में स्थित सिद्ध का नौला नाम से प्रसिद्ध नौला राजा बालो कल्याणचंद द्वारा बनवाया गया था। इसमें इस क्षेत्र में पाये जाने वाले अन्य नौलों की ही तरह भूमिगत जल को जलकुंड बना रोका गया है तथा स्तभ्भ बनाकर उपर कक्ष एवम् छत डाली गई है । उद्योत चंद के समय में यहां नाथ परम्परा के सिद्ध संत ऋद्धिगिरी निवास किया था। बाबा ऋद्धिगिरी ने जागेश्वर में जीवित समाधि ली थी।
लेकिन अल्मोड़ा के पूर्ण विकसित नगर बनने से पूर्व ही बालो कल्याण चंद का भी निधन हो गया। उसका उत्तराधिकारी रामचंद्र भी संतुलित तरीके से राजधानी बनाने की प्रक्रियागत योजना को ज्यादा आगे नहीं बढ़ा पाये। इसे बाद में रूद्रचंद (1565.97) और कल्याणचंद ने तीव्र गति से नगर के रूप में विकसित किया। चम्पावत से दरबारी और अधिकारी आकर अल्मोड़ा में बसने लगे थे जिसके बाद अल्मोड़ा नगर में नये मोहल्लों का तीव्र गति से निर्माण और विकास हुआ। नगर का विकास दक्षिण से उत्तर की ओर हुआ। पलटन बाजार, थाना बाजार, जौहरी बाजार, आदि मोहल्ले धीरे-धीरे विकसित होते चले गये। वर्तमान का गंगोला मोहल्ला, खजांची मोहल्ला, झिझाड़ मोहल्ला, सेला खोला, गल्ली मोहल्ला आदि चंद राजाओं के दरबारियों के आवास के निर्माण के कारण विकसित हुए। नक्कारची टोला तथा टम्टा मोहल्ला का विकास भी चंद शासकों के समय में ही हुआ था।
राजा रूद्रचंद के कार्यकाल में एक नये अष्ट पहल राजनिवास का निर्माण (वर्ष1588-89 ) में नगर के मध्य में करवाया गया था जो मल्ला महल कहलाता है। इस महल के संरचनागत निर्माण से लगता है कि देवी मंदिर तथा भैरव मंदिर ही प्रारम्भ में बनाये गये थे तथा पानी के संग्रहण के लिए विशाल जलाशय भी बनवाया गया। राजा रूद्रचंद द्वारा ही मल्ला महल में स्थित रामशिला मन्दिर का निर्माण भी करवाया गया था।
राजा लक्ष्मीचंद ने अल्मोड़ा के प्रसिद्ध लक्ष्मेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण करवाया था। राजा लक्ष्मीचंद (1597-1621) के बड़े भाई तथा रूद्रचंद के पुत्र शक्ति गुसांई ने नगर सौन्दर्यीकरण योजना के अन्तरगत ढ़लान पर बगीचे विकसित किये। वर्तमान का कपीना तथा लक्ष्मेश्वर के बगीचे काफी प्रसिद्ध रहे हैं। शक्ति गुसांई की नगर के विकास में रूचि होने के कारण वर्तमान के नरसिंहबाड़ी, पांडे खोला, बाड़ी बगीचा आदि भी विकसित हुए। चंद राजाओं के समय में अनेक नौले बनवाये गये इनमें चम्पानौला, रम्फा नौला, रानीधारा आदि शामिल हैं। कपीना का प्रसिद्ध नौला भी चंद शासकों द्वारा ही बनवाया गया था।
शिव मंदिर के रूप में चर्चित नारायण तिवारी देवाल का निर्माण राजा बाजबहादुर चंद (1638-78) ने अपने के दत्तक भाई नारायन तिवारी के सम्मान में वर्ष 1660 में किया था। उन्हीं के सम्मान में नारायण तिवारी बाजार का विकास भी किया गया।
राजा उद्योतचंद (1678-98) ने वर्ष 1689 में नगर के मध्य तल्ला महल बनवाया। आजकल यहां विक्टर मोहन जोशी महिला चिकित्सालय है। इसी राजा ने ड्योड़ीपोेखर नाम से अपनी रानियों के स्नान के लिए एक पानी का जलाशय बनवाया था ।
यह सर्वज्ञात है कि चंद राजाओं द्वारा निर्मित तल्ला महल काफी विस्तृत क्षेत्र में था। तल्ला महल से ड्योढ़ीपोखर आने जाने के लिए रास्ता भी बनाया गया था।
अल्मोड़ा की संस्कृति एवं इतिहास के जानकार मोहम्मद नाजिम अंसारी लिखते हैं कि यहीं तल्ला महल का प्रवेश द्वार (ड्योढ़ी ) भी स्थित था जिसके कारण आज भी इस स्थान को ड्योढ़ी-पोखर के नाम से जाना जाता है। इस तालाब तक पहुँचने के रास्ते में राजपरिवार की महिलाओं की सुरक्षा और निजता बनाए रखने के उद्देश्य से दोनो ओर पर्दे लगाए जाते थे। चंद राजवंश द्वारा यहां स्थापित मंदिर से नंदादेवी मेले के समय विसर्जन के लिए ले जाये जाते समय देवी प्रतिमाओं की आरती राजवंश की महिलाओं द्वारा आज भी की जाती है। राजा आनंद सिह जीवन के अन्तिम समय तक ड्योढ़ीपोखर में ही रहे थे। अब इस स्थान पर समीप ही परिसर से लगा हुआ राजा आनंद सिंह राजकीय बालिका विद्यालय है।
राजा उद्योतचंद ने पार्वतेश्वर, उद्योत चंदेश्वर, विष्णु मंदिर ,त्रिपुरा सुन्दरी, सिद्ध नरसिंह मंदिर भी बनवाये। कालभैरव, बटुक भैरव, बाल भैरव, शै भैरव, गढ़ी भैरव, आनंद भैरव, गौर भैरव और खुटकुणी भैरव अल्मोड़ा के अष्ट भैरव माने जाते हैं। इन मंदिरों की स्थापना उद्योतचंद के समय में उनके पुत्र चंद राजा ज्ञानचंद द्वारा करवाई गई थी। राजा दीपचंद ने (1760) में पार्वतेश्वर मंदिर के मंडप का निर्माण करवाया तब से यह मंदिर दीपचंदेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। इस देवालय परिसर को अब नंदादेवी मंदिर परिसर कहा जाता है। राजा दीपचंद (1743-77) के कार्यकाल में पाताल देवी मंदिर व धर्मशाला बनवाये गये जिसका निर्माण उनके सेनापति सुमेरू अधिकारी ने करवाया था। राजा मोहनचंद (1686-88 ) ने ही रघुनाथ मंदिर व बद्रीनाथ मंदिर बनवाये। राजनिवास के मुख्य द्वार को राजा विजयचंद ने वर्ष 1625 में बनवाया।
राजा ज्ञानचंद (1668-1708) ने अल्मोड़ा तथा अन्य स्थानों पर गणेश मंदिरों की स्थापना की। राजा कल्याणचंद द्वारा भी वर्ष 1731 में कुछ गणेश मंदिरों का पुनः निर्माण अथवा जीर्णाेद्धार करवाने का उल्लेख इतिहासकारों ने किया है।अल्मोड़ा में अनेक प्रसिद्ध प्राचीन गणेश मंदिर हैं इनमें भेटा गणेश, गैर गणेश, नंदादेवी गणेश तथा सिद्ध गणेश आदि हैं ।
चंद राजाओं के समय में नगर रक्षा के लिये भगवती दुर्गा के नौ मंदिर भी स्थापित किये गये। इनमें पातालदेवी अथवा पत्रेश्वरी देवी, यक्षिणी देवी, राजराजेश्वरी देवी, त्रिपुरा सुन्दरी देवी, नंदादेवी, उल्का देवी, सीतला देवी , कोट कालिका तथा दुर्गा देवी हैं।