बडेन मेमोरियल  मेथोडिस्ट चर्च अल्मोड़ा

बडेन मेमोरियल  मेथोडिस्ट चर्च अल्मोड़ा में स्थित एक ऐतिहासिक चर्च है। इसे जॉन हेनरी बुडेन की याद में बनाया गया था।  वह एक मेथोडिस्ट मिशनरी थे जिन्होंने कई वर्षों तक अल्मोड़ा में मिशनरी सेवा की थी। चर्च गोथिक वास्तुकला का एक सुंदर उदाहरण है और नगर का एक लोकप्रिय स्थल है। हिमांशु साह चर्च का निर्माण...

इंडो-यूरोपियन शैली में निर्मित है अल्मोड़ा का नार्मल स्कूल

अल्मोड़ा नगर में तराशे गये स्थानीय पत्थरों से बना गवर्नमेंट नार्मल स्कूल इंडो-यूरोपियन शैली की दर्शनीय विरासत है। यूरोपियन तथा भारतीय शिल्प समन्वय से बने इस भवन में यूरोपियन स्टाइल के बुर्ज, खिड़की, दरवाजे, मेहराब तथा शिल्प देखने लायक है । छत इंग्लैंड से मंगाई गई नालीदार चादरों से आच्छादित है।...

प्रागैतिहासिक हैं लखुडियार के शैलचित्र

लखुडियार का चित्रित शैेलाश्रय अल्मोड़ा नगर से १३ किमी. दूर अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ मार्ग पर दलबैंड के पास है । इसके बगल से ही सुआल नदी बहती है । सुआल का रूख यहां अर्धचन्द्रमा की तरह वर्तुलाकार हो जाता है । सड़क के दांयीं ओर नदी से लगा हुआ एक विशालकाय शिलाखंड है। इस विशाल शिला का ऊपरी भाग सर्प जैसी आकृति...

शिल्प की दृष्टि से सिरमौर है स्यूनराकोट का नौला

शोभित सक्सेना अल्मोड़ा जनपद के महत्वपूर्ण नौलों में से स्यूनराकोट का नौला शिल्प की दृष्टि से सिरमौर है। अल्मोडा से कौसानी जाने वाले मार्ग पर कोसी से आगे चल कर पक्की सड़क मुमुछीना गांव तक जाती है जहां से मात्र आधा किमी की दूरी पर पन्थ्यूड़ा ग्राम है। इसी गांव में यह नौला स्थित है। उत्तराभिमुख यह...

कुमाऊँ के भवनों का काष्ठ शिल्प

प्रागैतिहासिक मानव के कदम ज्यो-ज्यों सभ्यता की ओर की बढे उसकी पहली नजर लकड़ी पर पड़ी जो अपनी प्रकृति के कारण मानव आश्रयों के अभिप्राय गढ़ने के लिए कहीं ज्यादा उपयुक्त थी। ज्यों-ज्यों मानव का कला और अलंकरणों के प्रति झुकाव बढता गया उसने कालान्तर में अपने आवास में लकड़ी का प्रयोग कर उन्हें भव्य रूप देना...

श्रेणी: कला एवं शिल्प

हिमवान » कला एवं शिल्प

बडेन मेमोरियल  मेथोडिस्ट चर्च अल्मोड़ा

बडेन मेमोरियल  मेथोडिस्ट चर्च अल्मोड़ा में स्थित एक ऐतिहासिक चर्च है। इसे जॉन हेनरी बुडेन की याद में बनाया गया था।  वह एक मेथोडिस्ट मिशनरी थे जिन्होंने कई वर्षों तक अल्मोड़ा में मिशनरी सेवा की थी। चर्च गोथिक वास्तुकला...

इंडो-यूरोपियन शैली में निर्मित है अल्मोड़ा का नार्मल स्कूल

अल्मोड़ा नगर में तराशे गये स्थानीय पत्थरों से बना गवर्नमेंट नार्मल स्कूल इंडो-यूरोपियन शैली की दर्शनीय विरासत है। यूरोपियन तथा भारतीय शिल्प समन्वय से बने इस भवन में यूरोपियन स्टाइल के बुर्ज, खिड़की, दरवाजे, मेहराब तथा...

प्रागैतिहासिक हैं लखुडियार के शैलचित्र

लखुडियार का चित्रित शैेलाश्रय अल्मोड़ा नगर से १३ किमी. दूर अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ मार्ग पर दलबैंड के पास है । इसके बगल से ही सुआल नदी बहती है । सुआल का रूख यहां अर्धचन्द्रमा की तरह वर्तुलाकार हो जाता है । सड़क के दांयीं ओर...

शिल्प की दृष्टि से सिरमौर है स्यूनराकोट का नौला

शोभित सक्सेना अल्मोड़ा जनपद के महत्वपूर्ण नौलों में से स्यूनराकोट का नौला शिल्प की दृष्टि से सिरमौर है। अल्मोडा से कौसानी जाने वाले मार्ग पर कोसी से आगे चल कर पक्की सड़क मुमुछीना गांव तक जाती है जहां से मात्र आधा किमी...

कुमाऊँ के भवनों का काष्ठ शिल्प

प्रागैतिहासिक मानव के कदम ज्यो-ज्यों सभ्यता की ओर की बढे उसकी पहली नजर लकड़ी पर पड़ी जो अपनी प्रकृति के कारण मानव आश्रयों के अभिप्राय गढ़ने के लिए कहीं ज्यादा उपयुक्त थी। ज्यों-ज्यों मानव का कला और अलंकरणों के प्रति झुकाव...

दुर्लभ कलानिधि है पोण राजा की प्रतिमा

देश की धातु निर्मित सर्वाेत्तम कलानिधियों एवं प्रतिमाओं का यदि उल्लेख किया जाये तो यह निश्चित है कि कत्यूरियों के आदि पुरूष पोण राजा की धातु निर्मित प्रतिमा देश की सर्वश्रेष्ठ कलानिधियों में शीर्ष पर रहेगी। यह प्रतिमा...

उत्तराखण्ड में ताम्र शिल्प

देश के विभिन्न भागों से विशेष रूप से उत्तर प्रदेश से ताम्रयुगीन उपकरण वर्ष 1822 से ही प्रकाश में आते रहे हैं। किन्तु उनकी ओर ध्यान 1905 और 1907 में सर्वप्रथम आगरा अवध प्रांत के जिला...

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