चंद राजाओं द्वारा बनाई गई ऐतिहासिक इमारतों के अतिरिक्त भी अंग्रेजी शासन काल में अल्मोड़ा शहर में अनेक सुन्दर और कलात्मक भवनों का निर्माण किया गया। इनमें नार्मल स्कूल, बडन चर्च, टैगोर हाउस, मुख्य डाकघर, रैमजे स्कूल, एडम्स...
अल्मोड़ा चंद राजाओं के सपनों का शहर है। चंद राजाओं ने इस नगर को बसाने, सुन्दर और व्यवस्थित बनाने, जल प्रणालियों को सुरक्षित रखने तथा एक सांस्कृतिक नगर के रूप में स्थापित करने में अपना अप्रतिम योगदान दिया था। उनके द्वारा...
हिलजात्रा कुमाऊ क्षेत्र के सोर घाटी में मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण उत्सव है। यह उत्सव प्रतिवर्ष भाद्र माह के शुक्लपक्ष में मनाया जाता है। यह पर्व यहां मनाये जाने वाले एक अन्य पर्व आँठू के अन्तिम दिन अथवा उससे एक दिन...
शिरीष पांडे ज्योतिष, तन्त्र और मन्त्र ये ऐसी तीन विद्यायें हैं, जिससे उत्तराखण्ड का जनजीवन और लोक संस्कृति काफी प्रभावित रही है। कत्यूरी और चन्द राजा तन्त्र विद्या में पारंगत माने जाते थे। देवी की पूजा युद्ध देवी के रूप...
भगवान विष्णु के साथ अनिवार्य रूप से रहने वाले पक्षीराज गरूड़ का उल्लेख ऋग्वेद में सुपर्णा गरूत्मान के नाम से हुआ है। सूर्यदेव के सारथी अरूण के छोटे भाई , विनीता तथा कश्यप ऋषि की संतान गरुड़ विष्णु के वाहन हैं। कला में...
शिव रूप भैरव रक्षक देवता हैं। भारत वर्ष के अनेक किलों में उनकी स्थापना गढ़ के रक्षक के रूप में की गई है। अल्मोड़ा नगर में भी रक्षक देवता के रूप में उनकी स्थापना नगर के प्रमुख स्थानों में अष्ट भैरव रूप में की गई थी।...
मनीषियों द्वारा प्रतिपादित हिमालय के पांच भागों नेपाल, कूर्मांचल, केदार, जलंधर तथा कश्मीर में से दो केदार तथा कूर्मांचल को मिलाकर ही वर्तमान का उत्तरांचल राज्य बना है। पी0 बैरन ने वांडरिंग्स इन द हिमाल में इस पर्वतीय...
कुमाउ मंडल से प्राप्त शाक्त प्रतिमाओं में देवी पार्वती की सर्वाधिक प्रतिमायें प्राप्त होती हैं ।बाल्यावस्था में इनका नाम गौरी था जब ये विवाह योग्य हुईं तो इन्होंने शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिये घोर तपस्या की।...
आकाश में दिखाई देने वाले ज्योति पिंड के रूप में सूर्य की उपासना का क्रम वैदिक काल से चला आ रहा है । सूर्य और उसके विविध रूपों की पूजा उत्तर वैदिक काल से पल्लवित होती रही है। वेदोत्तर काल से इसका और भी विस्तार हुआ ।...
प्राचीन भारतीय वाङमय में शक्ति उपासना की परम्परा सम्भवतः देवी शक्ति से सामर्थ ग्रहण करने के उद्देश्य से ही की जाती होगी । साहित्यिक स्त्रोतों एवं पुरातात्विक उत्खननके आधार पर शक्ति उपासना की परम्परा व विकास का...