लेखक: कौशल किशोर सक्सेना

हिमालय में प्रसारित प्रथम मुद्रायें हैं कुणिंद सिक्के

अल्मोड़ा का राजकीय संग्रहालय अपनी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहरों के कारण इतिहासविदों, मुद्रा शास्त्रियों एवं पर्यटकों का आकर्षण बना हुआ है। यहां प्रदर्शित दुर्लभ कुणिन्द मुद्रायें केवल अल्मोड़ा, शिमला (हिंमाचल प्रदेश) तथा...

सारदा मठ, कसारदेवी-अल्मोड़ा

हिमालय की भारत के सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। स्वामी विवेकानंद तो हिमालय की इस आध्यामिक भूमिका के हमेशा ही प्रशंसक रहे। उन्होने कुमाऊँ हिमालय की चार बार यात्रायें की। अल्मोड़ा पर तो वे...

कसारदेवी शिलालेख

अल्मोड़ा से सात किमी की दूरी पर अल्मोड़ा-कफड़खान मार्ग पर कसारदेवीे का प्रसिद्ध देवालय स्थित है। इस देवालय के बांयी ओर पश्चिम दिशा में एक संकरा रास्ता पगडंडी की तरह बना हुआ है जो उस चट्टान तक ले जाता है जिस पर कभी किसी...

आध्यात्मिक ऊर्जा का केन्द्र है कसार देवी- कालीमठ पर्वत श्रृंखला

कसार देवी-कालीमठ पर्वत श्रृंखला घने वृक्षों से आच्छादित प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण एक शांतिप्रद रमणीक स्थल है जो ज्ञान की तलाश कर रहे साधकों को बर्बस अपनी ओर आकर्षित करता है। हिमालय की बर्फीली पर्वत श्रृंखलाओं को...

नन्दादेवी मंदिर-अल्मोड़ा

नन्दादेवी परिसर में तीन देवालय विद्यमान हैं । इनमें से दो मंदिर उद्योतचन्देश्वर तथा पार्वतेश्वर मंदिर वास्तुकला की दृष्टि से पुराविदों एवं स्थापत्य में रुचि रखने वालों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र बने हैं । तीसरा...

बालेश्वर मंदिर-चम्पावत

बालेश्वर का मंदिर शिल्प अपने आप में अनोखा है। इसका शिल्प कुमाऊँ में प्राप्त अन्य मंदिरों से अलग है । यह एक संयुक्त मंदिर है जिससे कभी दो मंदिर रहे होंगे जो आच्छादित कर एक दूसरे से जोड़े गये थे । प्रतीत होता है कि...

बैजनाथ देवालय

बैजनाथ को कत्यूरी नरेशों की पुरानी राजधानी कार्तिकेंयपुर से जोड़ा जाता है । यह स्थान अल्मोड़ा-बागेश्वर मार्ग पर कौसानी से 18 किमी. की दूरी पर बसा है । स्कन्द पुराण के मानस खंड में गोमती नदी एवं गारूड़ी नदियों के संगम पर...

अद्वितीय सांस्कृतिक विरासत है- कटारमल सूर्य मंदिर

रनीश एवं हिमांशु साह कटारमल का सूर्य मंदिर-उत्तर भारत की मध्य कालीन वास्तुकृतियों में विशिष्ट स्थान रखता है। अल्मोड़ा नगर से 13 किमी की दूरी पर बसे कोसी कस्बे से डेढ़़ किमी0 की पैदल चढ़ाई चढ़ कर अथवा कोसी बाजार से लगभग दो...

कुमाऊँ के भवनों का काष्ठ शिल्प

प्रागैतिहासिक मानव के कदम ज्यो-ज्यों सभ्यता की ओर की बढे उसकी पहली नजर लकड़ी पर पड़ी जो अपनी प्रकृति के कारण मानव आश्रयों के अभिप्राय गढ़ने के लिए कहीं ज्यादा उपयुक्त थी। ज्यों-ज्यों मानव का कला और अलंकरणों के प्रति झुकाव...

अपनी कलाऔर पुरासम्पदा लिए बेजोड़ है बमन सुआल मंदिर समूह

बमन सुआल वैसे तो एक छोटे से गांव का नाम है जो अल्मोड़ा जनपद के पट्टी मल्ला लखनुपुर से 6 किमी की दूरी पर सुआल नदी तथा थमिया के गधेरे के पास स्थित है। लेकिन बमन सुआल गांव में स्थित एकादश रूद्र नाम का प्राचीन मंदिर समूह...

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