अल्मोड़ा से लगभग 85 किमी. की दूरी पर स्थित तल्ला कत्यूर में गोमती-सरयू के संगम पर बागेश्वर जिले का मुख्यालय बागेष्वर स्थित है । इसे उत्तराखण्ड का प्रयाग भी कहा जाता है । लोकोक्ति हैं कि जिस प्रकार भगीरथ ने गंगा का अवतरण किया उसी प्रकार महर्षि वशिष्ठ द्वारा यहां सरयू लाई गईं थीं ।
यहाँ पर बागनाथ, बाणेश्वर तथा भैरवनाथ नामक तीन मन्दिर हैं । इस स्थान की धार्मिक मान्यता बहुत प्राचीन काल से है । संभवतः सर्वप्रथम इस स्थल पर मन्दिर का निर्माणकत्यूरी राजाओं द्वारा करवाया गया था, क्योकि यहां पर रखीं विभिन्न देवी-देवताओं की लगभग साठ पाषाण प्रतिमायें हैं जो अधिकतम ७वीं शती से १०वीं शती ई० की हैं । वर्तमान बागनाथ मन्दिर का निर्माण कुमाऊँ नरेश लक्ष्मीचन्द ने सन् १६०२ ई. में करवाया था । बाणेश्वर मन्दिर भी वास्तुकला की दृष्टि से १४वीं शताब्दी से अधिक प्राचीन नहीं है । बागनाथ तथा बाणेश्वर मन्दिरों के निर्माण में स्थानीय प्रस्तरों का प्रयोग किया गया है ।
इसके तलछन्द योजना के अन्तर्गत गर्भगृह, अन्तराल तथा मण्डप का निर्माण किया गया है । उर्ध्वछन्द में विभिन्न गढ़नों से युक्त वेदीबन्ध, त्रिरथ गर्भगृह के ऊपर रेखा शिखर तथा कपिली के ऊपर गजसिंह मंडित शुकनास है ।
बागनाथ के शीर्ष पर काष्ठ छत्र शोभायमान है । भैरवनाथ मन्दिर की छत सामान्य घरों की तरह ढलवां बनाई गई है । प्रतिमाओं में पार्वती, उमा-महेष, गणेश, महिषासुरमर्दिंनी, एक मुखी एवं चतुर्मुखी शिवलिंग, त्रिमुखी शिव, चतुर्भुज विष्णु, सप्तमातृका पट्ट, दशावतार पट्ट तथा शेषशायी विष्णु आदि की मूर्तियाँ सम्मिलित हैं । बागनाथ मन्दिर से कत्यूरी नरेश श्री भूदेव का 9र्वी शती का देवनागरी लिपि में एक अभिलेख प्राप्त हुआ था जिसमें भूदेव सहित आठ राजाओं के नामों का उल्लेख किया गया है। ये आठवें राजा गिरिराज चक्रचूड़ामणि के चक्रवर्ती सम्राट कहे जाते थे । यह एक प्रशस्ति अभिलेख था जिसमें मन्दिरों को दिये गये दानादि का उल्लेख किया गया था । इस शिलालेख में बागेश्वर का नाम व्याघ्रेष्वर अंकित था ।