द्वाराहाट नगर अल्मोड़ा जनपद का प्रमुख ऐतिहासिक व सांस्कृतिक केन्द्र है जहां कत्यूरी राजाओं ने अनेक नौले व देवालय बनवाये थे। समूचे द्वाराहाट में ही यूॅू तो देवालयों की प्रचुरता है लेकिन वास्तु, शैली एवं पुरातत्व की दृष्टि से गूजरदेव देवालय सबमें अनूठा है। यह देवालय द्वाराहाट नगर में शालदेव पोखर के निकट एक उंची जगती पर बनाया गया है। विश्वास किया जाता है कि यह मंदिर कभी पंचायतन रहा होगा परन्तु वर्तमान में चारों कोनों पर स्थापित लघु मंदिर समय के साथ नष्ट हो गये, आज इन मंदिरों की नींव के पत्थर ही बस शेष रह गये है।
गूजरदेव मंदिर भी एक भग्न स्मारक ही अधिक है। जो ध्वंसावशेष बचे हैं उनसे प्रतीत होता है कि गर्भगृह, मंडप एवं मुख मंडप की संरचनाओं को वास्तुकारों नेे अप्रतिम रूप से सजा कर इसके सौन्दर्य की अभिवृद्धि की थी। पश्चिमाभिमुख मुख्य मंदिर के मुख्य अधिष्ठान में जाने के लिए सीढि़यो का प्रयोग हुआ है। शंख तथा चन्द्र कलाओं से इन्हें अलंकृत किया गया है। मंदिर को देखकर लगता है कि अपने समय में इसकी भव्यता देखते ही बनती होगी। भग्नावशेष के आधार पर कहा जा सकता है कि इसके जैसे प्रासाद सौष्ठव व स्वरूप का देवालय आसपास कहीं नहीं होगा।
उध्र्वछंद योजना में मंदिर दो भिट्ट की पट्टियों, जाड्यकुंम, कर्णक, अन्तःपत्र, छाद्य, ग्रासपट्टी, गजथर, नरथर आदि में बंटी हुई संरचनायें है।जंघा भाग भी इसी प्रकार विभिन्न गढ़नों में अलंकृत किया गया है। उभरी हुई रथिकाओं में देवी-देवताओं की आकृतियां उकेरी गयी हैं।
सबसे उपर और उरू श्रृगों से देवालय सज्जित किया गया है। इस मंदिर की शैली को महामारू शैली में रखा जा सकता है।
तेरहवीं शती के आसपास निर्मित इस देवालय को शिव को समर्पित किया गया था। हांलांकि शिव को समर्पित इस देवालय में जैन देवी चक्रेश्वरी की प्रतिमा भी यहां उकेरी गयी थी।
सभी फोटो- रोहित साह, द्वाराहाट