लोहाघाट-देवीधुरा मोटर मार्ग से सात किमी. की दूरी तथा कर्ण करायत बस स्टाप से एक किमी. की दूरी पर बाणासुर का किला एक ऊँची चोटी पर स्थित है । इस किले के दक्षिण में काली कुमाऊँ की हरी भरी घाटी विस्तार पाती है । लोहावती घाटी लोहाघाट ते सलना तक विस्तृत है । इस घाटी के मध्य में मायावती नामक छोटी सी जलधारा है। इसी घाटी में लोहावती नदी की सहायक धारायें गणपति एवं मायावती प्रवाहित हैं ।
कहा जाता है कि किले का निर्माण बाणासुर नामक दैत्य ने किया था । श्री कृष्ण के पौत्र- प्रद्युम्न पुत्र अनिरूद्ध और बाणासुर की पुत्री उषा के सम्बन्ध में एक रोचक कथा भी यहाँ प्रचलित है। उषा अपनी सखी चित्रलेखा के माध्यम से अनिरूद्ध को यहाँ अपहृत कर लायी थी। ऐसी ही एक कहानी गढ़वाल में उखीमठ के सम्बन्थ में भी प्रचलित है। उखीमठ में तो उषा का प्रसि़द्ध मंदिर भी हैं।जनश्रुतियां हैं कि देवासुर संग्राम भी यहीं हुआ था । एक अन्य किवदंती यह भी है कि सप्तमातृकायें यहाँ गा रहीं थीं । बाणासुर ने उनका मनभावन गीत सुना तो वह अपने अस्त्र शस्त्र यहीं रखकर बैठ गया । बाद में उसने यहीं मातृकाओं का मंदिर स्थापित किया।
किला स्थानीय प्रस्तरों से निर्मित है! इस किले की तलछंद योजना आयताकार है । अस्सी मीटर लम्बाई तथा २० मीटर चैड़ाई में निर्मित इस कोट के चारों कोनों पर बुर्ज बने हैं जो सम्भवत प्रहरियों के प्रयोग के लिए होंगे। किले का एक द्वार पश्चिम-दक्षिण कोने में तथा दूसरा उत्तर-पूरब कोने के पास बना है । किले की दीवार में ऊपर की छोर ८८ छिद्र बनाये गये हैं । सम्भवतः यह शस्त्रों के प्रयोजनार्थ बने होंगे । मध्य में पक्का जलाशय है । कुंड से पकी ईटों के खंड भी प्राप्त हुए हैं । ईटों का प्रयोग धरातल में हुआ था । इस कुंड में जाने के लिए २६ संढि़याँ बनायी गयी हैं ।
किले के भीतर पाँच आवासीय भवन बनाये गये हैं । उ. पूर्व के द्वार के सन्मुख एक लघु कक्ष का भी निर्माण किया गया है । यह सम्भवतः प्रहरी कक्ष रहा होगा । किले की चाहरदीवारी के समक्ष बने विश्राम बुर्जों तक पहुंचने के लिए ढ़लवां रास्ता बनाया गया है । आवास गृहों की दीवारें ४७ सेमी. तक मोटी हैं । चिमनी युक्त चूल्हो से सज्जित निवास समूह के फर्श पक्के हैं । किले के बाहर पूर्व की ओर स्थानीय मृदभांडों के अवशेष तथा ईटें प्राप्त होती हैं । पश्चिम की और एण्टका नामक पहाडी पर पुरातन मृदभांडों के अवशेष भी प्राप्त होते है ।
किले पर खस जाति के मौर्य वंशीय सामंतों का आधिपत्य रहा । स्थानीय निवासी इसे माराकोट के नाम से जानते हैं । लगता है कि यहाँ से प्राप्त मृदभाड पूर्व मध्य काल में प्रयुक्त हुए होंगे ।
ग्राम सिरमोली पटवारी क्षेत्र ढ़ेरनाथ तहसील लोहाघाट में भी एक प्राचीन किले के अवशेष मिले हैं ।