हरेला पर्व : सुघड़ हाथों की करामात हैं – डिकारे

कुमाउनी जन जीवन में भित्तिचित्रों के अतिरिक्त भी महिलाएँ अपनी धार्मिक आस्था के आयामों को माटी की लुनाई के सहारे कलात्मक रूप से निखारती हैं। हरेला के त्योहार पर, जो प्रतिवर्ष श्रावण माह के प्रथम दिवस पड़ता है, बनाये जाने वाले डिकारे सुघड़ हाथों की करामात हैं जिसमें शिव परिवार को मिट्टी की आकृतियों...

उत्सवों का श्रृंगार है हमारी ऐपण

चन्द्र शेखर पंत, हल्द्वानी पर्वतीय क्षेत्रों के रिहायशी भवनों के बिभिन्न भागो को मांगलिक अवसरों पर महिलाओं द्वारा रचायेगये नयनाभिराम आलेखन नववधू जैसा सजाते हैं। इस क्षेत्र की महिलाओं ने अपनी लोक कला को जीवित रखने के लिए पीढि़यों से मौखिक रूप से इस कला को हस्तान्तरित किया है । क्षेत्र में महिलाओँ...

पहाड़ की संस्कृति में मंगलमय माने जाते हैं ज्यूंति मातृका पट्ट व थापे

पहाड़ की लोक संस्कृति में ज्यूंति व थापे को बेहद शुभ व मंगलमयी माना जाता है । इस क्षेत्र में महिलायें विभिन्न पर्वाें पर जलरंगों के संयोजन से दीवारों पर कई मनोहारी चित्रणेों को मूर्त रूप देती हैं जिन्हें ज्यूंति कहा जाता है। पुराने भवनों में जन्माष्टमी, दशहरा, नवरात्रि, दीवाली इत्यादि के अवसर पर...

श्रेणी: लोक कला

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हरेला पर्व : सुघड़ हाथों की करामात हैं – डिकारे

कुमाउनी जन जीवन में भित्तिचित्रों के अतिरिक्त भी महिलाएँ अपनी धार्मिक आस्था के आयामों को माटी की लुनाई के सहारे कलात्मक रूप से निखारती हैं। हरेला के त्योहार पर, जो प्रतिवर्ष श्रावण माह के प्रथम दिवस पड़ता है, बनाये जाने...

उत्सवों का श्रृंगार है हमारी ऐपण

चन्द्र शेखर पंत, हल्द्वानी पर्वतीय क्षेत्रों के रिहायशी भवनों के बिभिन्न भागो को मांगलिक अवसरों पर महिलाओं द्वारा रचायेगये नयनाभिराम आलेखन नववधू जैसा सजाते हैं। इस क्षेत्र की महिलाओं ने अपनी लोक कला को जीवित रखने के लिए...

पहाड़ की संस्कृति में मंगलमय माने जाते हैं ज्यूंति मातृका पट्ट व थापे

पहाड़ की लोक संस्कृति में ज्यूंति व थापे को बेहद शुभ व मंगलमयी माना जाता है । इस क्षेत्र में महिलायें विभिन्न पर्वाें पर जलरंगों के संयोजन से दीवारों पर कई मनोहारी चित्रणेों को मूर्त रूप देती हैं जिन्हें ज्यूंति कहा जाता...

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