अल्मोड़ा जनपद के महत्वपूर्ण नौलों में से स्यूनराकोट का नौला शिल्प की दृष्टि से सिरमौर है। अल्मोडा से कौसानी जाने वाले मार्ग पर कोसी से आगे चल कर पक्की सड़क मुमुछीना गांव तक जाती है जहां से मात्र आधा किमी की दूरी पर पन्थ्यूड़ा ग्राम है। इसी गांव में यह नौला स्थित है।
उत्तराभिमुख यह नौला 16वीं शती में निर्मित प्रतीत होता है। नौले की तलछंद योजना में गर्भगृह और अर्धमंडप है। अर्धमंडप का आकार तीन गढ़नो से सज्जित किया गया है। मध्यवर्ती गढ़न को पुप्पाकृतियों से सजाया गया है। स्तम्भों का निचला भाग भी वर्गरूपेण है जो अर्धपद्म से सज्जित किया गया है। मध्यवर्ती स्तम्भ में बारह लम्बवत परंतु सादी पट्टियां हैं। उपर की ओर तोड़ेनुमा आकृतियों के नीचे पद्म, फुल्ल पद्म सजाये गये हैं। तोड़े भी पद्म आकृतियों से सज्जित हैं। इनमें उपर की ओर गरू़ड सदृश आकृतियां बनायी गयी होंगी जो अब स्पष्ट नहीं है।
स्तम्भों के मध्य में एक विशाल पत्थर लगाकर एक सादा उत्तरंग बनाया गया है। बाहर की ओर स्नान के लिए मंच बनाये गये हैं।
गर्भगृह के प्रवेशद्वारों के स्तम्भों को पंच पत्रावलियों से सजाया गया है। इनमें पत्र शाखाओं और मणिबन्ध शाखाओं की बनावट दृष्टव्य है। ललाटबिम्ब में गणेश का अंकन किया गया है। सबसे उपर पुरूष आकृतियां अंकित हैं। प्रवेशद्वार के बायीं ओर त्रिरथ देवकुलिकायें बनायी गयी हैं। जिनके जंघा भाग सम्भवतः देवी देवताओं के पैनल से सजाये गये है। परन्तु वर्तमान में केवल हंस पर आरूढ़ वीणावादिनी सरस्वती तथा एक पुरूष आकृति ही दृष्टव्य है। नीचे की ओर भी कुछ आकृतियां बनायी गयी होंगी जिनमें एक पुरूष तथा एक स़्त्री आकृति स्पष्ट प्रतीत होती है। प्रवेशद्वार के एकदम बगल में बायीं ओर उपासिकाओं से पूजित गजलक्ष्मी का अंकन है। इसके बगल में व्याल आकृति तथा दायीं ओर भी देवकुलिकायें बनायी गयी हैें। इसी ओर नीचे कूर्मावतार तथा सूर्य का अंकन है।
परम्परिक गढ़नों से सज्जित कुंड के उपर गर्भगृह में भी देवकुलिकायें निर्मित की गयी है। जिनमें ढोलक बजाते पुरूष आखेट के लिए जाते धनुर्धारी आखेटक एवं गणेश आदि के अतिरिक्त गरूड़ का भी अंकन है। जंघा भाग को पैनल लगाकर विष्णु के दशावतारों से सज्जित किया गया है। जिनमें बायें से दायें मत्स्य के उपर आरूढ़ चारों वेद, नीचे की ओर जलचर, तलवारधारी अश्वारूढ कल्कि अपने सेवकों सहित विराजमान हैं। रामलक्ष्मण, वाराह अवतार, शंख, चक्र गदाधारी विष्णु , मुरली वादक कृष्ण तथा शेष पैनल अस्पष्ट हैं। वितान विभिन्न सोपानयुक्त आकृतियों से उपर उठाया गया है।
नौले में बाहर की ओर जंघा भाग पर भी पैनल लगे है। इनमें सम्भतः मातृकायें रहीं होंगी। टूटे पैनलों में लिंग पूजन, विष्णु, अश्वारूढ़ योद्धा, गायक-वादक, मंदिरों की आकृतियां, अत्यधिक लम्बा खडग लिये पुरूषाकृति तथा महिषमर्दिनी का अंकन है।
नौला तराशे गये प्रसाधित पत्थरों से बना है। छत पटालों से आच्छादित की गयी है।
लेकिन कुछ समय पूर्व तक सम्पूर्ण नौले की जर्जर हालत के कारण इसे तुरन्त बचाने की आवश्यकता थी। नौले में जगह जगह दरारें पड़ गयी थीं। छत गिरने के कगार पर आ गयी थी। पत्थर चटकने लगे थे। लोगों ने चूना पोत कर नौले को बदरंग कर दिया । चारों तरह पानी का रिसाव होंने के कारण कीचड़ हो गयी जिसके कारण भी क्षरण की प्रक्रिया तेज हो गयी थी। कई अलंकृत पैनल लोग उठाकर ले गये । लेकिन नौला नष्ट होने की स्थिति मे आने से पहले ही संस्कृति प्रेमियों के अथक प्रयासों से राज्य पुरातत्व संगठन ने इसे अपने संरक्षण में ले लिया जिससे एक अमूल्य धरोहर सदा के लिए नष्ट होने से बच गई।