भक्तों की सुनते हैं बाबा नीम करोली

एक युवा तेजस्वी साधक अपनी लय में चिमटा कमंडल जैसे परम्परागत साधुओं के सामान सहित टुण्डला की ओर जाती एक रेलगाड़ी के प्रथम श्रेंणी के डिब्बे में बैठ गया। एंग्लो इंडियन टिकट चैकर को इस अधनंगे साधु की यह धृष्टता नहीं भायी । उसने क्रोधित होकर साधु से जब टिकट मांगा तो साधु ने टिकट देने से भी इंकार कर...

जन- जन के आराध्य हैं बाबा गंगनाथ

पर्वतीय क्षेत्रों में बाबा गंगनाथ का बड़ा मान है। वे जन- जन के आराध्य लोक देवता हैं। बाबा गंगनाथ की लोकप्रियता का प्रमाण जगह -जगह स्थापित किये गये उनके वे मंदिर हैं जो वनैले प्रान्तरों से लेकर ग्राम, नगर और राज्य की सीमा पार कर उनके भक्तों द्वारा स्थापित किये गये हैं। इन्हीं में से एक है अल्मोड़ा...

चंद राजाओं के सपनों का शहर है अल्मोड़ा

अल्मोड़ा चंद राजाओं के सपनों का शहर है। चंद राजाओं ने इस नगर को बसाने, सुन्दर और व्यवस्थित बनाने, जल प्रणालियों को सुरक्षित रखने तथा एक सांस्कृतिक नगर के रूप में स्थापित करने में अपना अप्रतिम योगदान दिया था। उनके द्वारा बनवाये गये नौले-धारे आज भी अल्मोड़ा की जीवन रेखा बने हुए हैं। शोभित सक्सेना...

ऐतिहासिक है अल्मोड़ा का रामशिला मंदिर

अल्मोड़ा नगर के अति प्राचीन देवालयों में रामशिला मंदिर का स्थान पहला है। अल्मोड़ा की बसासत के दूसरे चरण के अन्तर्गत राजा रूद्रचंद के कार्यकाल में वर्ष 1588-89 में एक नये अष्ट पहल राजनिवास का निर्माण नगर के मध्य में करवाया गया था जो मल्ला महल कहलाता था। इसी मल्ला महल के केन्द्र में रामशिला मंदिर...

कुमाऊँ के देवालय – निर्माण तथा परिरक्षण

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में प्राचीन मंदिरोंके निर्माण की परम्परा लगभग सातवीं शती से निरन्तर पल्लवित होती रही है। इस क्षेत्र में मंदिर निर्माण क्रमानुसार लकड़ी, ईंट तथा मजबूत पत्थरों इत्यादि से हुआ। लकड़ी की प्रकृति दीर्घजीवी न होने के कारण काष्ठ निर्मित मंदिरों के निर्माण की परम्परा का अवसान...

बाबा नीब करौरी की लीला स्थली है कैंची धाम

हल्द्वानी से अल्मोड़ा की ओर मोटर मार्ग पर भवाली से थोड़ी ही दूरी पर इठलाती बलखाती एक छोटी सी नदी नैनीताल एवं अल्मोड़ा जनपदों की सीमा रेखा को खींचती हुई बहती है। इस नदी को बाबा नीम करोली ने उत्तर वाहिनी नाम दिया। उत्तर वाहिनी के तट पर भवाली से सात किमी आगे अल्मोड़ा की ओर मोड़ घूमते ही सिन्दूरी...

कुमाऊँ की आराध्य देवी हैं – हाट कालिका गंगोलीहाट

यूँ तो कुमाऊँ का कण-कण सौन्दर्य से परिपूर्ण है लेकिन कुछ स्थल ऐसे भी हैं जहा जाकर मन सम्मोहन की सीमा में पहुंच जाता है । पिथौरागढ जनपद के गंगोलीहाट कस्बे का काली मंदिर इनमें से एक है । गंगोली कस्बे की खूबसूरत घाटी में बना हाट कालिका मंदिर सदियों से श्रद्धालुओं तथा साधकों को श्रद्धा से वशीभूत करता...

शुभता और मांगल्य की प्रतीक है कुमाउनी नथ

उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में महिलाओं की मांगलिक परिधान एवं आभूषणों को लेकर यदि पहली पसंद पूंछी जाये तो उनका उत्तर होगा- पिछौड़ा एवं नथ। नथ ग्रामीण हो या शहरी सभी महिलाओं की सर्वप्रिय मांगलिक आभूषण है। शायद ही कोई अवसर ऐसा होगा जब परिवार में उत्सव हो, संस्कार हो, अनुष्ठान सम्पन्न किया जाने वाला...

प्रस्तर शिल्प में गंगा

भारतीय मानस में गंगा का स्वरूप केवल जलधारा अथवा वेगमती सरिता का नहीं है। वे समूचे भारतीय समाज में जिस रूप में बसी हैं उसकी व्याख्या करना भी सम्भव नहीं है। उनका स्वरूप आध्यात्मिक है, दिव्य है, वत्सल है, चारू है और मां के...

कूर्मांचल की रामलीला का समृद्ध इतिहास है

देश की प्रसिद्व रामलीलाओं में कूर्माचलीय रामलीला का एक समृद्ध इतिहास है। कूर्मांचलीय रामलीला ने हिन्दी रंगमंच के इतिहास तथा देश की प्रसिद्ध रामलीलाओं में अपनी मौलिकता, कलात्मकता, संगीत एवं रागरागिनियों में निबद्ध होने...

कुमाऊँ के नौलेः कला एवं परम्परा

सृष्टि में जीवन की उत्पत्ति का मूल आधार जल है। मानवीय बसासत को बस्ती का रूप देने के लिए नजदीक में जल की निरन्तर उपलब्घता एवं स्वच्छ जल का निरन्तर प्रवाहमान स्त्रोत अनिवार्य तत्व रहा। मानवीय आवास इसीलिए सबसे पहले जल के...

कुमाऊं में दुर्ग परम्परा

प्राचीन भारतीय राज व्यवस्था में सीमाओं की सुरक्षा का प्रश्न सर्वदा महत्वपूर्ण रहा है। राज्य की सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सीमाओं की सुरक्षा के लिए तत्कालीन शासको द्वारा की गयी व्यवस्थाओं के कई साक्ष्य दृष्टिगत होते...

प्राचीन मानव की सुन्दरतम अभिव्यक्ति हैं शैलचित्र

शिलाचित्र मानव की सुन्दरतम अभिव्यक्ति ही नहीं वरन् उसकी अमूल्य धरोहर भी हैं । माना जा सकता है कि जबसे पृथ्वी पर मनुष्य का जीवन प्रारम्भ हुआ तभी से कला का भी उद्भव हो गया होगा । कला एक इतिहास ही नहीं वरन् सृजन भी है ।...

बौद्ध आश्रम कसार देवी अल्मोड़ा

अल्मोड़ा का अन्तराष्ट्रीय बौद्ध आश्रम उच्च स्तरीय ध्यान एवं साधना करने वाले देसी विदेशी साधकों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र है। यह साधना केन्द्र बौद्ध धर्म अनुयायियों की कग्युग शाखा का उत्तराखंड में स्थापित सबसे...

उत्तराखण्ड में ताम्र शिल्प

देश के विभिन्न भागों से विशेष रूप से उत्तर प्रदेश से ताम्रयुगीन उपकरण वर्ष 1822 से ही प्रकाश में आते रहे हैं। किन्तु उनकी ओर ध्यान 1905 और 1907 में सर्वप्रथम आगरा अवध प्रांत के जिला...

अल्मोड़ा का नाम रोशन किया था आइरिन पंत ने

आजादी से पूर्व के जिन प्रखर व्यक्तित्वों के कारण अल्मोड़ा जैसे छोटे पर्वतीय नगर की विशिष्ट पहचान बनी तथा गरिमा में वृद्धि हुई उनमें आइरिन पंत उर्फ राना लियाकत अली गुलराना का नाम आज भी दीपक की ज्योति की तरह टिमटिमा रहा...

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