अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ मार्ग पर पेटसाल में उतर कर ठीक पूर्व-उत्तर दिशा में लगभग आधा किमी. चलकर पेटसाल और पूनाकोट गाँवों के बीच में कफ्फरकोट नामक शैलाश्रय है| कफर-का अर्थ है- चट्टान और कोट का अर्थ है -दुर्ग । इस शैलाश्रय के ठीक सामने नीचे की ओर पूना नदी बहती है।
शैलाश्रय काफी कुछ ध्वस्त हो चुका है। पर्वत की धार में स्थित यह शैलाश्रय पश्चिम-दक्षिणाभिमुख है | वर्तमान समय में नजदीक में बस्ती होने के कारण स्थानीय लोगों ने पटालें निकालने के लिए इस चट्टान का प्रयोग किया है। इस कारण चित्रित हिस्सा भी काफी कुछ नष्ट हो गया है । शेष रह गये चित्रों में सबसे निचली पंक्ति में दायें से बाय क्रम में बारह मानवाकृतियां गहरे कत्थई रंग से और इनके साथ बीच-बीच में हल्के लाल रंग से मानवाकृतियों का चित्रण है।
कत्थई रंग से चित्रित आकृतियाँ मोटी, स्पष्ट एवं लम्बी हैं तथा हल्के लाल रंग से चित्रित आकृतियां लम्बी और पतली हैं । प्रतीत होता है कि इनमें एक पुरुष आकृति के बाद एक स्त्री आकृति चित्रित की गयी होगी । किन्तु दोनों की अलग-अलग पहचान थोड़ा कठिन है। इनमें ऊपरी पंक्ति में दस मानव-आकृतियाँ क्रमबद्ध तरीके से चित्रित हैं। इस पंक्ति के ऊपर भी मानवों की श्रृंखला दर्शायी गयी है। एक विशालकाय मानवाकृति विशेष रूप से आकर्षित करती है | पंक्तिबद्ध मानव एक के ऊपर एक खड़े प्रतीत होते हैं| विशाल मानव आकृति इन सबका नेतृत्व कर रही है | एक लम्बी लहरदार रेखा निचली पंक्ति से ऊपरी मानव के कंधे तक खींची गयी है| सम्भव है कि यह सीमा रेखा हो | यद्यपि नृत्यरत मानवों का समूह नृत्य में कम गतिशील लगता है तथापि एकरुपता, लयबद्धता, बाँह में बाँह डाले मानव श्रंखला झोड़ा नृत्य की बरबस याद दिलाती है। सम्भव है यह नृत्य दृश्य और भी बड़ा रहा हो किन्तु चट्टान के खंडित होने के कारण चित्र संयोजन नष्ट हो गया है।
इस दृश्य के बाद थोड़े फासले पर ऊपर की ओर दो विशालकाय जानवरों जैसी आकृतियां एवं उनकी पीठ के सहारे खड़ी दो विशालकाय मानव आकृतियां चित्रित की गयी हैं | इसके थोड़ा ऊपर सत्रह मानवाकृतियों का एक कतारबद्ध समूह नृत्यरत है। इन आकृतियों का रंग हल्का कत्थई लाल है। समूह बाहों में बाहें डाले लयबद्ध है । मानवाकृतियाँ भी अपेक्षाकृत पतली हैं। स्त्री-पुरुष अंकन स्पष्ट नहीं हैं। इसके थोड़ा ऊपर एक चौपाया है। आखेट दृश्य भी प्राप्त नहीं हो सका है। परिधान अवश्य क्षेत्र में पाये गये अन्य शिलाचित्रों से साम्य रखते हैं, हथियार सदृश वस्तु का भी अंकन ज्ञात नहीं है।
शैलाश्रय का दायाँ भाग ध्वस्त हो चुका है, केवल चट्टान का पिछला हिस्सा ही शेष बचा है। इस बचे हिस्से में भी विभिन्न ज्यामिती डिजाइन एवं मानवाकृतियाँ चित्रित हैं| किन्तु शैलाअ्रय का ऊपरी हिस्सा नष्ट प्रायः हो जाने के कारण ताप, वर्षा का प्रभाव सर्वाधिक इसी हिस्से पर पड़ा।
इसी कारण चित्र धूमिल हो गये हैं। वैसे तो सम्पूर्ण शैलाश्रय के चित्र नष्ट प्रायः हैं फिर भी पश्चिम की ओर बाकी बचे हिस्से में कुछ चित्र दृष्टव्य हैं। एक षटकोणीय आकृति जिसके भीतर इसी प्रकार की अन्य आकृति बनी है; का क्या प्रयोजन था, ज्ञात नहीं हो सका है।