अल्मोड़ा से सात किमी की दूरी पर अल्मोड़ा-कफड़खान मार्ग पर कसारदेवीे का प्रसिद्ध देवालय स्थित है। इस देवालय के बांयी ओर पश्चिम दिशा में एक संकरा रास्ता पगडंडी की तरह बना हुआ है जो उस चट्टान तक ले जाता है जिस पर कभी किसी शिल्पी ने उत्तर भारत की महत्वपूर्ण पुरातात्विक धरोहरों में से एक इतिहास प्रसिद्ध इस शिलालेख को रचने के लिए अपनी छेनी चलायी थी। जर्जर होती जा रही इस शिला के पास आप जब तक पहॅुंँच नहीं जाते लगता ही नही है कि इतिहास की इतनी बेशकीमती धरोहर इस चट्टान में समायी होगी ।
इस विशाल शिला पर छटी शती ई. का एक अत्यंत महत्वपूर्ण लेख उत्कीर्ण किया गया है जिसमें लिखा गया है -“रूद्रेश्वरः प्रतिष्ठापितः वेतला पुत्रा रूद्रकेण” जिसका अर्थ है कि वेतला के पुत्र रूद्र्रक ने महादेव को स्थापित किया। यह लेख ब्राहमी लिपी में उत्कीर्ण है । लगभग आधी शती पूर्व सर्वप्रथम इसे डा0 दिनेश चन्द्र सरकार ने ऐपिग्राफिया इंडिका में प्रकाशित कर विद्वानों एवं जन सामान्य का ध्यान इस महत्वपूर्ण धरोहर की ओर आकर्षित किया । भाषा की जटिलता के कारण लम्बे समय तक तो इस शिला लेख का अनुवाद ही नहीं हो पाया लेकिन बाद में जब किसी तरह अनुवाद हुआ तो भी यह जानकारी केवल शोधलेख बन कर ही रह गयी। उत्तर भारत के इतिहास में प्राकृतिक चट्टान पर इस तरह का प्राचीन लेख मिलना एक अति दुर्लभ घटना थी । इस खोज से इस अवधारणा की अवश्य पुष्टि हुई कि छटी शती ई. से पूर्व भी इस दुर्गम पर्वतीय क्षे़त्र में महादेव के मंदिरों को स्थापित करने की एक निश्चित परम्परा थी।
कसारदेवी का यह इलाका बहुमूल्य ऐतिहासिक और पुरातात्विक धरोहरों को छुपाये है। माठ-मटेना गांव के पास के प्रागैतिहासिक शैलचित्र भी इसी क्षेेत्र में मिले हैं तो दूसरी ओर सड़क किनारे चट्टानों में दबे जीवाश्मों को भी यहां देखा जा सकता है। इस शिला के पास ही एक स्थान पर तीन अन्य चट्टानों पर शैलचित्र भी बने हुए हैं जो सम्भवतः दो से चार हजार साल तक पुराने हो सकते हैं । प्रागैतिहासिक मानव द्वारा बनाये गये भी यहां ढ़ेरोंओखलनुमा गढ़े मौजूद हैं।