अल्मोड़ा नगर के जिन सौन्दर्य स्थलों को देखने पर्यटक आते रहते हैं उनमें एक है मुख्य डाकघर के पास स्थित भारत रत्न पंडित गोविन्द बल्लभ पंत को समर्पित छोटा सा पार्क जहां बोगेनवेलिया की आसमान छूती बेल प्रकृति का दुर्लभ नजारा प्रस्तुत करती है।
शहर के मध्य स्थित देवदार के विशाल पेड़ पर छाई बोगेनवेलियाकी यह आरोही लता अपने आप में अनूठी है । ऐसा प्रतीत होता है कि मानो इस लता ने पूरी शिद्दत से पचास फिट से भी ऊंचे देवदार के पेड़ को अपनी बाहों में भर लिया है। सितम्बर तक आते-आते बोगेनवेलिया के चमकदार बैगनी फूल विशाल देवदार के वृक्ष को आच्छादित कर पूरा छिपा लेते हैं । प्रकृति के इस मंजर को देखने के लिए मई से सितंबर के बीच सैलानियों का तांता लगा रहता है । देवदार तथा बोगेनवेलिया के मिलन का दृश्य अनूठा है। इन दोनों के एकाकार होने का ऐसा नजारा शहरी क्षेत्रों में शायद ही कहीं उपलब्ध हो । यही नहीं शाम के समय घोसला बनाये सेैकड़ों चिड़ियों को यहां एक साथ देखना भी अनूठी अनूभूति है।
वैसे बोगेनवेलिया दक्षिणी अमेरिका, ब्राजील, पेरू आदि देशों का मूल निवासी है जिसको सबसे पहले 1768 में ब्राजील में खोजा गया था। अपने अन्वेषक फ्रैंच नौसेना के एडमिरल लुइस एन्टोनी डी बोगनवेले के नाम पर ही इसका नाम बोगेनवेलिया कर दिया गया। मलेशिया, ताइवान का यह राजकीय पुष्प है। इसके वास्तविक पुष्प सफेद होते हैं जिन्हें रंगीन बै्रक्ट चारों ओर से घेरे हुए होते हैं। इसकी कुछ प्रजातियों को तो कागज का फूल भी कहा जाता है। भारत, फिलीपींस, थाइलैंड, पाकिस्तान, श्रीलंका, आस्ट््रेलिया आदि में इसको सजावटी बेल के रूप में लगाया जाता है।
कुमायॅू विवि सोबन सिंह जीना परिसर अल्मोड़ा में वनस्पति विज्ञान विभाग के वनस्पति विज्ञानी प्रोफेसर पी सी पांडे मानते हैं कि इसकी कांटेदार बेल सामान्यतः एक से बारह मीटर तक उंची हो सकती है। लेकिन अल्मोड़ा में बोगेनवेलिया की इतनी ऊंची बेल अजूबा है।
इतिहास ज्ञात नहीं है कि अल्मोड़ा में बोगेनवेलिया को इस पार्क में किसने रोपा । पुराने लोगों का कथन है कि यह बेल अंग्रेजों के आने से पूर्व की है। जहां पंडित गोविन्द बल्लभ पंत की प्रतिमा स्थापित है, यह स्थान पहले भी एक छोटा पार्क रहा होगा।
पहले इस पार्क के पास अधिक निर्माण न होने के कारण पेड़ों को पानी प्राकृतिक रूप से मिल जाया करता था। लेकिन बढ़ते शहरीकरण के कारण सीमेंट के प्रयोग ने उन स्थानों को समाप्त कर दिया जहां से जमीन के अन्दर पानी जा सकता था। माना जा रहा है कि चारो तरफ सींमेंट का प्रयोग हो जाने से पानी की कमी का प्रभाव बोगेनवेलिया की इस बेल पर भी पड़ना कभी भी शुरू हो सकता है।
चारो तरफ कंक्रीट के प्रयोग के कारण इतनी जगह ही नहीं बची है कि वर्षो से खड़े पेड़ों की जड़ों तक पानी जा सके। पर्याप्त मात्रा में पानी न मिलने के कारण अब बोगेनवेलियाकी इस लता के सूखने का खतरा पैदा हो रहा है। यदि वक्त रहते इस प्रकृति के इस वरदान को न बचाया गया तो बढ़ते शहरीकरण तथा पक्के निर्माण के चलते प्रकृति की बेशकीमती यह धरोहर दम तोड़ देगी।
ऐसे में बगल में ही रहने वाले अवकाश प्राप्त कर्नल जे सी लोहनी बहुत चिन्तित है। जब तब वह बाल्टी से पानी लाकर इस लता की जड़ो में डालते रहते है। उनका कहना है कि प्रकृति के इस दुर्लभ उपहार को बचाने के लिए जरूरी है कि नगर पालिका देवदार व उस पर आश्रित बोगेनवेलिया को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराये जिससे इन देानों का सौन्दर्य बरसों तक निहारा जा सके।