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कौसानी में राष्ट्र्पिता ने लिखा था अनासक्ति योग

राष्ट्र्पिता महात्मा गांधी ने वर्ष 1929 की जून-जुलाई माह में कौसानी में रह कर गीता पर अपनी प्रसिद्ध टीका अनासक्ति योग की रचना की थी। महात्मा गांधी के आने से पहले कौसानी मात्र उजड़े हुए चाय बागानों के लिए ही जानी जाती थी । पर्यटकों का प्रिय स्थल बनाने की शुरूवात गांधी जी के यंग इंडिया में प्रकाशित लेखों के कारण ही हुई | गांधी जी ने कौसानी में जिस भवन में प्रवास किया वह भवन अब ऐतिहासिक धरोहर बन चुका है जिसे अनासक्ति आश्रम के नाम से जाना जाता है।

स्वप्निल सक्सेना

गांधी जी वर्ष 1929 की ग्रीष्म ऋतु में कौसानी आये थे। उनके साथ कस्तूरबा गांधी, पुत्र देवदास तथा भतीजे प्रभुदास के अतिरिक्त जमुनादास बजाज, उनकी अंग्रेज शिष्या मीराबेन तथा अनेक गांधीवादी नेता भी थे। गांधी जी जब तक अपने कौसानी प्रवास पर रहे विदेशी अखबारों के संवाददाता भी यहा उनसे मिलने आते रहते थे। 1929 में राष्ट्र्पिता महात्मा गांधी ने यहीं अनासक्ति योग लिखा था। तब इस बंगले को स्थानीय लोग लाल बंगला कहते थे । इस बंगले की लाल छतें दूर से ही दिखाई देती थीं। स्थानीय चाय बागान के अंग्रेज स्वामी के इस बंगले को सरकारी रिकार्ड में बलना नाम दिया गया था।

कौसानी पहले से ही अपनी बेहतरीन चाय के लिए प्रसिद्ध रहा है। लेकिन कभी चाय बागानों के लिए मशहूर यह स्थल गांधी जी के यहाँ आने से पूर्व विस्मृति के गर्भ में जा चुका था। तत्कालीन अल्मोड़ा जिले में गांधी जी ने तीन सप्ताह तक प्रवास किया लेकिन उनका सबसे अधिक समय कौसानी में ही बीता । इस प्रसिद्ध स्थान के सौन्दर्य पर उन्होंने लिखा – मैं साश्चर्य सोंचता हूँ कि इन पर्वतों के दृश्यों तथा जलवायु से बढ़ कर होने की बात तो दूर है इस स्थल की बराबरी भी संसार का कोई अन्य स्थल नहीं कर सकता।

स्वप्निल सक्सेना

कभी कौसानी अल्मोड़ा जिले में ही था। अब यह बागेश्वर जनपद का प्रवेशद्वार है। कौसानी प्रकृति की नैसर्गिक छटा और लावण्य से समृद्ध है। हिमालय का विहंगम दृश्य एवं गरूड़ -बैजनाथ की खूबसूरत वादियों का दर्शन यहीं से होता है। कौसानी आकर हर पर्यटक बापू की इस विरासत का दर्शन अवश्य करता है।

उत्तराखंड में चल रहे स्वतंत्रता आन्दोलन तथा बागेश्वर में कुली बेगार की सफलता से महात्मा जी का ध्यान इस पर्वतीय क्षेत्र की ओर गया। यहाँ बापू 1929 मेअपनी बागेश्वर यात्रा के लिए आये। बागेश्वर आने से पहले कौसानी में उन्हें एक चाय बागान के मालिक के भवन में ठहराया गया । यद्यपि उन्हें यहाँ एक दिन ही ठहरना था लेकिन प्रकृति के पल पल बदलते रंगों से वे इतने प्रभावित हुए कि यहाँ चौदह दिन ठहरे । यहां उन्होंने अनासक्ति योग नाम से पुस्तक की रचना भी की।

स्वप्निल सक्सेना

बाद में उत्तर प्रदेश गांधी स्मारक निधि ने इस भवन को ले लिया | प्रसिद्ध गांधीवादी आचार्य कृपलानी के प्रयत्नों से इसे गांधी विचारों के प्रचार-प्रसार का केन्द्र बनाने का काम शुरू हुआ। इसे अनासक्ति आश्रम का नाम दिया गया। वर्तमान में इस आश्रम का संचालन एक न्यास करता है।

इस भवन में एक विशाल प्रार्थना कक्ष है जहां नित्य प्रार्थना होती है | गांधी जी के विचारों को जानने -समझने के लिए आने वाले पर्यटकों को आवासीय सुविधा उपलब्ध है। यहां एक वाचनालय व पुस्तकालय भी है। गांधी दर्शन पर शोध करने वालो के लिए कई दुर्लभ ग्रंथ भी मौजूद है। इसके प्रांगण में प्रतिदिन सायं सूर्यास्त के समय हिमालयी शिखरों पर पड़ती स्वर्णिम आभा से ओतप्रोत नयनाभिराम दृश्यों को देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ती है।

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