अल्मोड़ा की बाल मिठाई और सिंगौड़ी पूरे देश में प्रसिद्ध है। एक जमाने से प्रसिद्ध इस मिठाई की लोकप्रियता के कारण एक दूसरे के यहां जाने आने पर उपहार के रूप में लोग बाल मिठाई ही ले जाते है। मैदानी क्षेत्रों में पलायन कर गये प्रवासियों में भी बाल मिठाई और सिंगौड़ी की मांग रहती है। दिल्ली के व्यापार मेले में भी विगत वर्षों से बाल मिठाई भी बेची जा रही है। पहले तो बाल मिठाई का निर्यात इंग्लैंड इत्यादि को भी होता था।
अनुमान है कि अल्मोड़ा नगर और इसके आस पास प्रतिवर्ष लगभग पचास करोड़ रूपयों का बाल मिठाई और सिंगौड़ी का व्यवसाय होता है। मोटर रोड के किनारे की दुकानों सहित लगभग एक सौ से ज्यादा व्यापारी बाल मिठाई बनाते है जिसे अल्मोड़ा की प्रसिद्ध बाल मिठाई के नाम से बेचा जाता है।
अल्मोड़ा नगर में आज भी कई व्यवसायी ऐसे हैं जिन्होंने परम्परागत रूप से तैयार की जाने वाली इस मिठाई की गुणवत्ता से समझौता नहीं किया। यह व्यवसायी आज भी पहाड़ी खोये से ही मिठाई बनाते है। परम्परागत रूप से तैयार की जाने वाली यह मिठाई अल्मोड़ा नगर के आस पास के ग्रामीण इलाकों में चीड़ और बांज की लकड़ी की आग पर तैयार खोये से बनाई जाती है। यह खोया स्वाद में मैदानी क्षेत्रों से आने वाले खोये से पूरी तरह अलग है।
बाल मिठाई के स्वाद एवं निर्माण के परम्परागत तरीके को निखारने एवं विकसित करने में में नगर के ही मिठाई विक्रेता स्व0 नंदलाल और लाला जोगा साह का बहुत योगदान रहा है। उनके द्वारा बनाई जाने वाली बाल मिठाई को तो घर परिवारों में शकुन के रूप में देने का चलन ही बन गया । बाद मेें बाल मिठाई केेा स्वाद के कारण मिली लोकप्रियता के कारण अनेक अन्य मिठाई विके्रताओं ने भी बाल मिठाई बनाने की इस विधा को पोषित किया। खीम सिंह मोहन सिंह रौतेला की बाल मिठाई और सिंगौड़ी तो ब्रांड ही बन गई है। आज भी नगर में एक दर्जन से ज्यादा दुकानदार परम्परागत रूप से बाल मिठाई बना रहे हैं। अब से कुछ वर्ष पूर्व तक रैमजे स्कूल के सामने भारी मात्रा मेें ग्रामीण क्षेत्रों से घरों में बना खोया लाकर प्रतिदिन सुबह स्थानीय खोया बेचने वालोें का बाजार ही लगता था ।
बाल मिठाई और सिंगौड़ी के परम्परागत व्यवसायी जीवन सिंह हीरा सिंह फर्म के स्वामी नवनीत सिंह कहते हैं कि पहाड़ी खोये के मंहगा होने के कारण अल्मोड़ा की परम्परागत बाल मिठाई थोड़ी मंहगी जरूर है लेकिन इसके स्वाद की कोई सानी नहीं है।
जाहिर है कि अल्मोड़ा की बाल मिठाई ने गांव घरों में अपने स्वाद के कारण जो जगह बनाई है उसे हजारों किमी दूर बसे प्रवासी भी भूलते नहीं हैं। शायद इसी लिए परम्परागत बालमिठाई के शौकीनों की संख्या में आज भी कोई अन्तर नहीं आया है।