हिमवान » कुमाऊँ » नेहरू जी के प्रवास का प्रतीक है अल्मोड़ा का जिला कारागार

नेहरू जी के प्रवास का प्रतीक है अल्मोड़ा का जिला कारागार


अल्मोड़ा जिला कारागार का अद्भुत इतिहास है। यहाँ गोविंद वल्लभ पंत, जवाहर लाल नेहरु, खान अब्दुल गफ्फार खान,आचार्य नरेन्द्रदेव, बद्रीदत्त पांडे,विक्टर मोहन जोशी आदि महान क्रांतिकारियों ने अपने कारावास की अवधि व्यतीत की है।
गुलामी के दिनों में कैदी के रूप में अल्मोड़ा जिला कारागार में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु तथा अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने जो दिन बिताये थे जल्दी ही उन दिनों की स्मृतियों को सलीके से संजोकर पर्यटकों के लिए खोला जा सकेगा।

जवाहर लाल नेहरु अल्मोड़ा जिला जेल में दो बार राजनैतिक बंदी के रूप में रहे। पहली बार 28 अक्टूबर 1934 को वे अल्मोड़ा जिला जेल लाये गये। यह पंडित जवाहरलाल नेहरू के जीवन के कष्टमय दिन थे जब उनकी मां स्वरूप रानी खासी बीमार थीं तथा पत्नी कमला नेहरू टीबी से पीडि़त। उनके साथ सबसे त्रासद यह था कि अंग्रेज सरकार कमला नेहरू की बीमारी की गम्भीरता को समझ कर भी उनसे यह वायदा लेना चाहती थी कि वे यदि रिहा होकर कमला नेहरू की बीमारी में साथ रहना चाहते हैं तो उन्हें आश्वासन देना होगा कि सजा के शेष समय में वे राजनैतिक गतिविधियों मे भाग नहीं लेंगे। नेहरू जी को बताया गया था कि कमला नेहरू की हालत दिनों-दिन बिगड़ती जा रही है। यदि वे कमला नेहरू के साथ कुछ समय बितायें तो हो सकता है कि कमला नेहरू की हालत में कुछ सुधार हो जाये। इससे पूर्व जवाहर लाल नेहरू देहरादून जेल मे भी रहे तथा उन्हें वहाँ से भी इसलिए रिहा किया गया था जिससे वे इलाहाबाद जाकर अपनी पत्नी का इलाज करा सकेे। परन्तु उन्हें ग्यारह दिन बाद ही दुबारा फिर गिरफ्तार कर लिया गया। इस बार उन्हें नैनी जेल भेजा गया। जहाँ से बाद में उन्हें अल्मोड़ा जिला जेल में स्थानान्तरित किया गया।

अंग्रेजों की चालबाजियों को नेहरू बहुत अच्छी तरह समझ रहे थे। उन्हें मालूम था कि राजनैतिक गतिविधियों को रोकने की उन्हें क्या कीमत अदा करनी पड़ेगी। यह उनके जीवन का सबसे कठिन समय था जिसमें एक ओर उनकी पत्नी का जीवन दांव पर लगा हुआ था तो दूसरी ओर अपने साथियों के साथ विश्वासघात और अपने सिद्धान्तांे से समझौता करना पड़ता जिसकी ग्लानि उन्हें जीवन भर कचोटती रहती। लेकिन उन्होनें परिणाम की चिंता न कर इस शर्त को मानने से इंकार कर दिया।
कमला नेहरू को बीमारी के इलाज के लिए भवाली सेनेटोरियम लाया गया। भवाली सेनेटोरियम ही उस समय टीबी के इलाज का सबसे अच्छा केन्द्र था। बाद में पंडित नेहरू को भी अल्मोड़ा जिला जेल स्थानांतरित किया गया जहां से वे हफ्ते में एक बार अपनी पत्नी से मिलने भवाली जा सकते थे। अल्मोड़ा जिला कारागार में ही उन्होनें अपना पैतालीसवां जन्म दिन मनाया। नेहरू जी यहाँ अधिकांश समय प्रकृति से प्रेरणा लेकर, अपनी पुस्तक को लिपिबद्ध करने में बिताया। वे अपना मनोरंजन पेड़-पक्षियों को देखकर तथा पुस्तकें पढ़कर किया करते थे। उन्होनें इसका उल्लेख अपनी पुस्तक मेरी कहानी में भी किया है। उन्होंने अपनी आत्मकथा मेरी कहानी को भी अल्मोड़ा जेल में ही पूरा किया। उन्हें इस कारागार में राजनैतिक कैदियों वाले वार्ड में रखा गया था जिसे अब नेहरु वार्ड भी कहा जाता है।
परन्तु अगले कुछ दिन फिर परेशानी के थे । कमला नेहरू की हालत बिगड़ती गयी। उन्हें जर्मनी ले जाया गया तथा नेहरू जी को भी अन्तिम समय में उनके साथ रहने के लिए 4 सितम्बर 1935 को अल्मोड़ा जिला जेल से छोड़ दिया गया। पंडित नेहरू को अल्मोड़ा जिला जेल का यह प्रवास एक राजनेैतिक बंदी के साथ-साथ एक लेखक एवं विचारक का भी रहा।
पंडित नेहरू दूसरी बार 10 जून 1945 से 15 जून 1945 तक पुनः बंदी रहे। लेकिन इस बार उनके साथ सीमान्त गांधी खान अब्दुल गफफारखान, भारतरत्न पंडित गोविन्द बल्लभ पंत , आचार्य नरेन्द्र देव आदि भी थे।
देश की स्वतंत्रता के कुछ साल बाद 1954 में स्वंत़त्रता सेनानियों की स्मृतियों को सहेजने के उद्देश्य से अल्मोड़ा जिला जेल के अन्दर सीमा बनाकर इसका प्रवेश द्वार अलग कर दिया गया। इसे नेहरू वार्ड का नाम दिया गया। इसमे प्रयास किया गया कि नेहरू जी के साथ जिन स्वतंत्रता सेनानियों ने कारागार के दिन काटे है उनकी स्मृतियों को भावी पीढ़ी के लिये संजोया जाये। यहां नेहरू जी द्वारा उपयोग में लायी गयी तमाम वस्तुऐं प्रदर्शन के लिए रखी गयी है। इनमें उनकी चारपाई, लोटा, गिलास-थाली, खाने का कटोरा, चरखा, स्टूल, कुर्सी आदि शामिल हैें। जेल का तत्कालीन रजिस्टर का वह पृष्ठ भी यहां रखा है जिसमें उनके जेल प्रवास की अवधि अंकित है। आचार्य नरेन्द्र देव, गोविन्दबल्लभ पंत सीमान्त गांधी आदि की तस्वीेरे भी लगी हैं। अनेक स्वतंत्रता सेनानियों के भी नाम पट पर अंकित है। तब श्री नेहरू ने अध्ययन के लिए रसोई को ही एक पृथक अध्ययन कक्ष के रूप में प्रयोग किया था। जिसमे उन्होंने मेरी कहानी को लिपिबद्ध किया। इस कक्ष को अब नेहरू पुस्तकालय नाम दिया गया है परन्तु पुस्तकों के नाम पर केवल तीन पुस्तकें हैं। नेहरू जन्म शताब्दी के अवसर पर स्थापित शहीद स्वतंत्रता सेनानियों का स्मृति पट भी यहां लगा है।
हर वर्ष यहां क्रान्ति दिवस पर कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैें।

स्मारकों को बचाएं, विरासत को सहेजें
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