स्वामी विवेकानंद की प्रथम विदेशी शिष्या सिस्टर निवेदिता को कौन नहीं जानता। लेकिन बहुत ही कम लोग जानते हैं कि सिस्टर निवेदिता को भारतीय ध्यान साधना और उसके अनुसरण की प्रक्रिया का ज्ञान स्वामी विवेकानंद ने अल्मोड़ा में ही दिया था। सिस्टर निवेदिता ने अल्मोड़ा के जिस भवन मे में प्रवास किया उसे आज निवेदिता काॅटेज के नाम से जाना जाता है।
अल्मोड़ा नगर के मुख्य मार्ग में विश्व विद्यालय परिसर के प्रवेश द्वार के ठीक सामने पूर्व की ओर एक विशाल एवं भव्य इमारत बरबस ध्यान आकर्षित करती है। देवदार के पेड़ों से आच्छादित ब्रिटिश कालीन इस बिल्डिंग को अन्टा हाउस के नाम से जाना जाता था। यह भवन इ शरमन ओकले का भी निवास रहा है जिन्होंने विश्व प्रसिद्ध पुस्तक होली हिमालय लिखी थी। हिमालय की हिममंडित श्रृंखलाओे के भव्य स्वरूप तथा हवालबाग की विहंगम घाटी के अतिरिक्त अस्तांचल को जाते सूर्य देव के अद्भुत दर्शन भी इस भवन से किये जा सकते हैं।
यह सर्व विदित है कि स्वामी जी की तीसरी और अन्तिम अल्मोड़ा यात्रा वर्ष 1898 के मई-जून माह में उनके अनुयायी सेवेयर दम्पत्ति के आग्रह पर हुई थी । इस यात्रा में उनके साथ उनके गुरूभाई स्वामी तुरियानंद, निरंजनानंद, सदानंद तथा स्वरूपानंद के साथ-साथ विदेशी महिला भक्त श्रीमती बुल, सिस्टर निवेदिता, श्रीमती पैटरसन तथा मैक्लाउड थीं। स्वामी जी तथा सभी गुरूभाई समीप के थाम्पसन हाउस में तथा महिला अनुयायी ओकले हाउस में रूकी थीं। स्वामी जी के समय में इस भवन को ओकले हाउस के नाम से ही जाना जाता था। निवेदिता कॉटेज ही वह भवन और स्थान है जहां विवेकानंद ने अपनी सबसे प्रसिद्ध विदेशी भक्त मार्गरेट नोबल को भारत की महिलाओं को जाग्रत करने एवं शिक्षित करने के लिए सक्रिय प्रयास प्रारम्भ करने की सहमति दी थी।
स्वामी विवेकानंद के अभिन्न मित्र लाला बद्रीसाह ठुलघरिया के पौत्र गिरीश साह ठुलघरिया कहते हैं- स्वामी जी ने सिस्टर निवेदिता को ध्यान साधना की सर्वप्रथम अनुभूति इसी स्थान पर देवदार के विशाल वृक्ष के नीचे करवाई । वे उन्हें सिस्टर कह कर पुकारते थे। स्वामी जी सुबह का जलपान तथा शाम की चाय भी अपने शिष्यों के साथ इसी स्थान पर आकर पीते थे। उन्होंने इसी भवन में अपने अनुयायियों को भारतीय इतिहास, संस्कृति, ज्ञान और परम्पराओं की शिक्षा और उसके अनुसरण की प्रक्रिया का प्रशिक्षण दिया।
पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री स्व बुद्धिदेव भट्टाचार्य ने 1992 में जब इस स्थान का भ्रमण किया तो उन्होंने इस बंगले का नाम निवेदिता काॅटेज करने का सुझाव दिया। वर्ष 1993 से यह भवन निवेदिता काॅटेज के नाम से जाना जाता है।
गिरीश साह ने स्वामी जी की स्मृतियों को चिरस्थायी करने के लिए इस भवन के एक कक्ष को एक सुन्दर लघु संग्रहालय का रूप दे दिया है। इस कक्ष में स्वामी जी द्वारा उपयोग की गई अनेक वस्तुऐं संग्रहीत है। इनमें रोशनी करने के लिए प्रयोग किये गये लैम्प, पेपरवेट, शयन के लिए प्रयोग की गई चारपाई, जलपात्र, स्वामी जी द्वारा प्रयोग की गई कुर्सी, शीशा, सिस्टर निवेदिता के फोटो तथा स्वामी जी के कुछ दुर्लभ चित्र प्रदर्शित किये गये हैं। उनके द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली एक ऐशट्रे , हुक्का, एक बुक शेल्फ और लंदन से सिस्टर निवेदिता द्वारा लाए गए उपहार भी यहां संजोये गये हैं।
गिरीश साह ठुलघरिया के निजी संग्रह में स्वामी जी के हस्तलिखित मूल पत्र भी हैं। इनमें वह पत्र भी है जिसमें स्वामी विवेकानंद ने लाला बद्रीसाह को हिमालय में अपने आश्रम स्थापना की योजना के विषय में लिखा तथा आश्रम के लिए स्थान खोजने का आग्रह भी किया था। यहां लाला बद्रीसाह को स्वामी विवेकानंद के निधन की सूचना का 5 जुलाई 1902 को कलकत्ता से भेजा गया मूल टेलीग्राम संदेश भी संग्रहीत हैै।
भवन के बाहर देवदार का वह विशाल वृक्ष अभी भी विद्यमान है जिसके नीचे स्वामी जी ने सिस्टर निवेदिता को ध्यान की आध्यात्मिक अनुभूति करवाई थी। वर्ष 2015 में इस वृक्ष के नीचे सिस्टर की एक आदमकद प्रतिमा स्थापित की गई है जहां देश के दूर दराज से आये श्रद्धालु सिस्टर निवेदिता को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।
भवन का एक बड़ा हिस्सा गेस्ट हाउस के रूप में बदल दिया गया है। गिरीश साह कहते हैं-अब इस भवन का आंशिक रूप से गेस्ट हाउस के रूप में उपयोग किया जाता है लेकिन फिर भी यहां स्वामी विवेकानंद और भगिनी निवेदिता के प्रवास की स्मृतियां बरकरार हैं। यहां स्वामी जी के प्रति श्रद्धा रखने वाले आगन्तुक भी प्रायः रूका करते हैं।
सिस्टर निवेदिता और स्वामी विवेकानंद के प्रवास एवं पदार्पण तथा साह परिवार द्वारा संरक्षित सामग्री के कारण निवेदिता काॅटेज निश्चित ही धार्मिक पर्यटन का प्रमुख केन्द्र जैसा भी बन गया है।