स्वामी विवेकानंद की अल्मोड़ा यात्राओं का यदि सन्दर्भ लिया जाये तो थाॅमसन हाउस का उल्लेख होना स्वाभाविक है। हिमालय यात्रा के दौरान अल्मोड़ा से स्वामी विवेकानंद की अनेक यादें जुड़ी हुई हैं। वह वर्ष 1898 में कई दिनों तक अल्मोड़ा के ऐतिहासिक थाॅमसन हाउस में ठहरे थे। थाॅमसन हाउस अल्मोड़ा नगर से हल्द्वानी जाने वाले मुख्य मार्ग पर आकाशवाणी के पास मोटर मार्ग से सटा हुआ ही है ।
स्वामी विवेकानंद को अल्मोड़ा बहुत प्रिय था और वह अपने जीवनकाल में तीन बार अल्मोड़ा आए। वर्ष 1898 में जब स्वामी विवेकानंद तीसरी बार अल्मोड़ा आए तो वह अगस्त माह में आकाशवाणी के निकट स्थित अपने शिष्य कैप्टन सेवियर के घर थाॅमसन हाउस में ठहरे थे। इस भवन को जेवियर दम्पत्ति ने एक वर्ष के लिए स्वामी जी एव मेहमानों के लिए किराये पर लिया था।
स्वामी विवेकानंद ने लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से 1896 में प्रबुद्ध भारत नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू करवाया था। प्रारम्भ में यह पत्रिका मद्रास से प्रकाशित हुई तब बी आर राजाराम अय्यर ने प्रबुद्ध भारत के सम्पादक का भार संभाला था।
प्रबुद्ध भारत के प्रथम सम्पादक राजाराम अय्यर की असमय मृत्यु के बाद ही प्रबुद्ध भारत का प्रकाशन अगस्त 1898 में थाॅमसन हाउस से प्रारम्भ हुआ। प्रबुद्ध भारत के कई अंक अल्मोड़ा से निकले। इस पत्रिका को प्रकाशित करने के लिए यहां प्रिंटिंग मशीन भी स्थापित की गई थी । इस भवन में स्वामी विवेकानंद स्वामी सदानंद, स्वरूपानंद, कृपानंद तथा अन्य विदेशी शिष्यों सहित रहे थे।
अल्मोड़ा से प्रकाशित होने पर प्रबुद्ध भारत का सम्पादन स्वामी जी के युवा शिष्य स्वामी स्वरूपानंद ने 1899 से 2006 तक किया था। चार माह तक प्रकाशन के बाद वर्ष 1999 मार्च माह में मायावती के अद्वैत आश्रम से इस पत्रिका का प्रकाशन होने लगा। सेवियर दम्पति के प्रयासों से लोहाघाट के मायावती नामक स्थान पर अद्वैत आश्रम की स्थापना की गई और प्रिटिंग मशीन को भी वहीं शिफ्ट कर दिया गया।
सेवियर दंपति के जाने के बाद अल्मोड़ा का थामसन हाउस भी वीरान हो गया।
आजादी के बाद वर्ष 1950 में यह भवन सरकार के अधीन आ गया और कुछ साल बाद इस भवन में राजकीय जनार्दन आईटीआई स्थापित कर दी गई। लेकिन जनार्दन आइटीआई के नये भवन के बनने के बाद थाॅमसन हाउस वीरानी की गर्त में चला गया। ये जरूर है कि जैसे तैसे इस भवन के बाहरी हिस्से में स्वामी विवेकानंद की आवाक्ष प्रतिमा लगाकर लोगों ने अपने कर्तव्य की पूर्ती कर ली। सन् 2016 के अप्रेल माह मे स्वामी विवेकानंद के वर्ष 1890 से 1898 तक अल्मोड़ा प्रवास की स्मृति में इस भवन में उत्तराखंड के तत्कालीन राज्यपाल श्री के के पाल ने स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा एवं एक स्मृति पटल का भी अनावरण भी किया था।
मलेरिया के कारणों की खोज करने वाले महान वैज्ञानिक और वर्ष 1902 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित सर रोनाल्ड रॉस का जन्म भी 13 मई 1857 को अल्मोड़ा के इसी थाॅमसन हाउस में हुआ।
उनके पिता ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में नैनीताल में थे और 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अल्मोड़ा आ गये और थॉमसन हाउस में रहते थे। भारतीय चिकित्सा सेवा में चयनित हुए रोनाल्ड रॉस ने 1892 में मलेरिया पर शोध करना शुरू किया। मलेरिया का प्रकोप तब इतना ज्यादा था कि तब इसे महामारी ही समझा जाता था। वर्ष 1897-98 में वह सबसे पहले यह सिद्ध करने में सफल हुए कि मलेरिया ऐनफेलीज मच्छर के काटने से फैलता है। उनकी इस खोज के लिए ही उन्हें नोबल पुरूस्कार से सम्मानित किया गया था।
लेकिन अब इस भवन में सन्नाटा पसरा हुआ है। वीरान पड़े इस इस भवन को विरासत के रूप में संरक्षित कर यहां स्वामी विवेकानंद और इस क्षेत्र में जन्में नोबल पुरूस्कार से सम्मानित रोनाल्ड रॉस से जुड़े संग्रहालय का रूप दिया जा सकता है।