भगवान विष्णु के साथ अनिवार्य रूप से रहने वाले पक्षीराज गरूड़ का उल्लेख ऋग्वेद में सुपर्णा गरूत्मान के नाम से हुआ है। सूर्यदेव के सारथी अरूण के छोटे भाई , विनीता तथा कश्यप ऋषि की संतान गरुड़ विष्णु के वाहन हैं। कला में इनका अंकन प्राचीन काल से ही होता चला आया है। उनको मस्तिष्क का प्रतीक माना गया है. मस्तिष्क ही सभी प्राणियों को नियंत्रित करता है तथा मेधा, प्रज्ञा, विवेक तथा कल्पना शक्ति में मस्तिष्क से आगे किसी भी भौतिक वस्तु की कल्पना नहीं की जा सकती.
गरुड़ के विशाल डैने उनका आकाश में सभी दिशाओं पर नियंत्रण प्रदर्शित करते हैं. शीर्ष पर धारण किया गया अमृत घट वास्तव में ज्ञान का कुम्भ है तथा पंजो में जकड़ा हुआ सर्प विसंगतियों का प्रतीक है. आशय है कि प्रज्ञावान ही दोषों पर नियंत्रण कर सकते हैं.
उत्तराखंड के प्रतिमा शिल्प में गरुड़ की उपरोक्त लक्षणों से युक्त प्रतिमाऐं लक्ष्मी-नारायण के साथ विष्णु वाहन के रूप में अथवा स्वतंत्र, पक्षीमुखी या मानवदेहधारी रूप में पर्याप्त मात्रा में मिलती हैं. कुमाऊं के सभी भागों में मध्य काल के बाद विष्णु प्रतिमाओं में भी थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ गरुड़ का अंकन लगभग अनिवार्य सा हो गया था. महा रुद्रेश्वर अल्मोड़ा, कासनी पिथौरागढ़ तथा मर्सोली के मंदिरों में ऐसी प्रतिमाएं मौजूद हैं.
वेबसाइट हिमवान में प्रदर्शित चित्र मानवदेहधारी उड़ते हुए गरुड़ का कल्पनात्मक अंकन है। गरुड़ का प्रतीकात्मक अंकन उनके उपरोक्त गुणों को दृष्टिगत रखते हुए किया गया है।